Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 37
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | विजएणं वद्धाति त्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणंति । २४ ।तए णं से सूरियाभे देवे तं दिव्वं देविड्ढेि दिव्वं देवजुई दिव्वं देवाणुभावं पडिसाहरइ त्ता खणेणं जाते एगे एगभूए, तए णं से सूरियाभे देवे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ त्ता वंदति णमंसति त्ता नियगपरिवाल सद्धिं संपरिवुडे तमेव दिव्वं जाणविमाणं दुरुहति त्ता जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगये ॥ २५भंतेति भयवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदति नमसति त्ता एवं ३०-सूरियाभस्सणं भंते! देवस्स एसा दिव्वा देविड्ढी|| दिव्वा देवजुत्ती दिव्वे देवाणुभावे कहिं गते कहिं अणुपविढे?, गोयमा! सरीरं गते सरीरं अणुपविटे, से केण्डेणं भंते! एवं वुच्चइ सरीरं गते सरीरं अणुपविढे?, गोयमा! से जहानामए कूडागारसाला सिया दुहतो लित्ता दुहतो गुत्ता गुत्तदुवारा णिवाया णिवायगंभीरा, तीसे णं कूडागारसालाते अदूरसामंते एत्य णं महेगे जणसमूहे चिट्ठति, तए णं से जणसमूहे एगं महं अब्भवलगं वा वासवदलगं वा महावायं वा एजमाणं पासति त्ता तं कूडागारसालं अंतो अणुपविसित्ताणं चिट्ठइ, से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चति सरीरं अणुपविढे || २६ । कहिं णं भंते! सूरियाभस्स देवस्स सूरियाभे णामं विमाणे पं०?, गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं इमीसे रयणप्यभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जातो भूमिभागातो उड्ढं चंदिमसूरियगहगणणक्खत्ततारारूवाणं बहूई जोयणाई बहूई जोयणसयाई बहूई जोयणसहस्साई बहूई जोयणसयसहस्साई बहुईओ जोयणकोडीओ० बहुईओ जोयणसयसहस्सकोडीओ उड्ढं दूरं वीतीवइत्ता एत्थ्णं सोहम्मे कप्पे नाम कप्पे पं० पाईणपडीणआयते उदीणदाहिणविच्छिण्णे अद्धचंदसंठाणसंठित अधिमालिभासरासिवण्णाभे I॥ श्री राजप्रश्रीयोपांगम् ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121