Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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सुपतिहिए विसिढे अणेगवरपंचवण्णकुडभीसहस्सुस्सिए (प्र०स्सपरिमंडियाभिरामे) वाउ यविजयवेजयंतीपडागच्छत्तातिच्छत्तकलिते|| तुंगे गगणतलमणुलिहंतसिहरे जोअणसहस्समूसिए महतिमहालए महिंदज्झए पुरतो अहाणुपुवीए संपत्थिए, त्याणंतरं च णं सुरूवणेवत्थपरिकच्छिया सुसज्जा सव्वालंकारभूसिया महया भडचडगरपहगरेणं पंचअणीयाहिवइणो पुरतो अहाणुपुवीए संपत्थिया (प्र० तयाणंतरं च बहवे आभिओगिया देवा देवीओ यसएहिं २ रूवेहिं सएहिं २ विसेसेहिं सएहिं २ विंदेहिं (प्र० विहवेहिं) सएहिं २ णिज्जोएहिं (५० जाएहिं) सएहिं २ णेवत्थेहिं पुरतो अहाणुपुव्वीए संपत्थिया,) तयाणंतरं चणं सूरियाभविमाणवासिणो बहवे वेमाणिया देवा य देवीओ य सव्विड्ढीए जाव रवेणं सूरियाभं देवं पुरतो पासतो य मागतो य समणुगच्छंति ११६। तए णं से सूरियाभे देवे तेणं पंचाणीयपरिक्खित्तेणं वइरामयवट्टलट्ठसंठिएणं जाव जोयणसहस्समूसिएणं महतिमहालतेणं महिंदझएणं पुरतो कड्ढिजमाणेणं चहिं सामाणियसहस्सेहिं जाव सोलसहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहिं अन्नेहि य बहूहिं सूरियाभविमाणवासीहिं वेमाणिएहिं देवेहिं देवीहि यसद्धि संपरिवुडे सव्विड्ढीए जावरवेणं सोधम्मस्स कप्पस्समझूमझेणं तं दिव्वं देविड्ढिं दिव्यं देवजुतिं | दिव्वं देवाणुभावं उवदंसेमाणे२ पडिजागरेमाणेजेणेव सोहम्मकप्पस्स उत्तरिल्ले णिज्जाणमग्गे तेणेव उवागच्छतित्ता जोयणसयसाहस्सितेहिं विगहेहिं ओवयमाणेवीतीयमाणेताए उक्ट्ठिाए जावतिरियमसंखिजाणंदीवसमुदाणंमझमझेणं वीइक्यमाणेजेणेव नंदीसरवरदीवे जेणेव दाहिणपुरच्छिमिल्ले रतिकरपव्वते तेणेव उवागच्छति त्ता तं दिव्वं देविड्ढिं जाव दिव्वं देवाणुभावं पडिसाहरेमाणे २ श्री राजप्रश्रीयोपांगम् ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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