Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalirth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir विउव्वइ त्ता जेणेव सूरियाभे देवे तेणेव उवागच्छइ त्ता सूरियाभं देवं करयलपरिग्गहियं जाव पच्चप्पिणंति १५ोतए णं से सूरिआभे|| देवे आभिओगस्स देवस्स अंतिए एयभटुं सोच्चा निसम्म हट्ठजावहियए दिव्वं जिणिंदाभिगमणजोगं उत्तरवेउवियरूवं विउव्वति त्ता चाहिं अग्गमहिसीहिं सपरिवाराहिं दोहिं अणीएहिं, तं०-गंधव्वाणीएणय णडाणीएण यसद्धि संपरिवुडे तं दिव्वं जाणविमाणं अणुपयाहिणीकोमाणे २ पुरच्छिमिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं दुरूहति त्ता जेणेव सिंहासणे तेणेव उवागच्छइ त्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे, तए णं तस्ससूरिआभस्स देवस्सचत्तारि सामाणियसाहस्सीओतं दिव्वं जाणविमाणंअणुप्याहिणीकोमाणा उत्तरिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं दुरूहति त्ता पत्तेयं २ पुव्वण्णत्थेहिं भद्दासणेहिं णिसीयंति अवसेसा देवा य देवीओ यतं दिव्यं जाणविभाणं जाव दाहिणिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं दुरूहंति ना पत्तेयं २ पुव्वण्णत्थेहिं भद्दासणेहिं निसीयंति, तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स तं दिव्वं जाणविमाणं दुरूढस्स समाणस्स अट्ठमंगलगा पुरतो अहाणुपुवीए संपत्थिता तं०सोत्थ्यिसिरिवच्छजावदप्यणा, त्याणंतरं च णं पुण्णकलसभिंगार० दिव्वा य छत्तपडागा सचामरा सणरतिया आलोयदरिसणिज्जा वाउ यविजयवेजयंती असिया गगणतलमणुलिहंती पुरतो अणुपुबीए संपत्थिया, त्याणंतरं च णं वेरुलियभिसंतविमलदंड पलंबकोरंटमल्लदामोवसोभितं चंदमंडलनिभं समुस्सियं विमलमायवत्तं पवरसीहासणं च मणिरयणभत्तिचित्तं सपायपीढं सपाउयाजोयसमाउत्तं बहुकिंकराभरपरिग्गहियंपुरतो अहाणुपुवीए संपत्थियं, तयाणंतरं चणंवइरामयवट्टलट्ठसंठियसुसिलिट्ठपरिघट्ठभट्ठ॥ श्री राजप्रश्रीयोपांगम् ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private and Personal Use Only

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