Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे विउव्वति, तेसिं णं तोरणाणं उपिं बहवे छत्तातिच्छत्ते घंटाजुगले पडागाइपडागे उप्पलहत्याए कुमुदणलिणसुभगसोगंधियपोंडरीयमहापोंडरीय सतपत्तसहस्सपत्तहत्थए सव्वरयणामए अच्छे जाव पडिरूवे विउव्वति, तए णं से आभिओगिए देवे तस्स दिव्वस्स जाणविमाणस्स अंतो बहुसमरमणिज्जं भूमिभागं विउव्वति, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेति वा भुइंगपुक्खरेइ वा सरतलेइ वा करतलेइ वा चंदमंडलेइ वा सूरमंडलेइ वा आयंसमंडलेइ वा उरम्भचम्मेइ वा (प्र० वसहचम्मेइ वा ) वराहचम्मेइ वा सीहचम्मेइ वा वग्घचम्मेइ वा मिगचम्मेइ वा छगलचम्मेइ वा दीवियचम्मेइ वा अणेगसंकुकी लगसहस्सवितए आवडपच्चावड सेढिपसे ढिसोत्थिय (सोवत्थिय ) पूसमाणग (वद्धमाणग) मच्छंडगमगरं डगजारामाराफुल्लावलिप मपत्तसागरतरं गवसंतलयप मलयभत्तिचित्तेहिं सच्छाएहिं सम्पभेहिं समरीइएहिं सउज्जोएहिं णाणाविहपंचवण्णेहिं मणीहिं उवसोभिए तं०किण्हेहिं णीलेहिं लोहिएहिं हालिदेहिं सुकिल्लेहिं, तत्थ णं जे ते किण्हा मणी तेसिं णं मणीणं इमे एतारूवे वण्णावासे पं०, से जहानाभए जीमूतएइ वा अंजणेइ वा खंजणेइ वा कज्जलेइ वा गवलेइ वा गवलगुलियाइ वा भमरेइ वा भमरावलियाई वा भमरपतंगसारेति वा जंबूफलेति वा अद्दारिट्ठेइ वा परहुतेइ वा गएइ वा गयकलभेइ वा किण्हसप्पेइ वा किण्हकेसरेइ वा आगासथिग्गलेइ वा किण्हासोएइ वा किण्हकणवीरेइ वा किण्हबंधुजीवेइ वा भवे एयारूवे सिया ?, णो इण्डे समट्टे (प्र० ओवम्मं समणाउसो ! ) ते णं किण्हा मणी इत्तो इट्ठतराए चेव कंततराए चेव पिअतराए चेव मणामतराए चेव मणुण्णतराए चेव वण्णेणं पं०, तत्थ णं जे ।। श्री राजप्रश्रीयोपांगम् ॥ पू. सागरजी म. संशोधित १० For Private and Personal Use Only

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