Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वा अतुरियं जाव सव्वतो समंता आवरिसेज्जा एवामेव तेऽवि सूरियाभस्स देवस्स आभियोगिया देवा अब्भवहलए विउव्वंति त्ता खिय्यामेव पयणुतणायन्ति त्ता खिय्यामेव विजुयायंति त्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स सव्वओ समंता जोयणपरिमंडलं णच्चो दगंणाति मट्टियंतं पविरलपप्फुसियंरयरेणुविणासणं दिव्वं सुरभिगंधोदगंवासं वासंतित्ता णिहरयंणद्वरयं भट्टरयं उवसंतरयं पसंतरयं करेंति त्ता खिप्पामेव उवसामंति त्ता तच्चंपि वेउब्वियसमुग्धाएणं समोहणंति त्ता पुष्फवद्दलए विउव्वंति, से जहाणामए मालागारदारए सिया तरुणे जाव सिप्पोवगए एगं महं पुष्फपडलगंवा पुष्पचंगेरियं वा पुष्फछजियं वा गहाय रायंगणं वा जाव सव्वतो समंता क्यम्गाहगहियकयलपब्मटुविष्यमुक्केणं दसद्धवन्नेणं कुसुमेणं मुक्कपुष्पपुंजोक्यारकलितं रेजा एवामेव ते सूरियाभस्स देवस्स आभिओगिया देवा पुष्फवद्दलए विउव्वंति त्ता खिप्यामेव प्यणुतणायन्ति त्ता जाव जोयणपरिमण्डलं जलथलयभासुरप्पभूयस्स बिंटट्ठाइस्स दसद्धवनकुसुमस्स जाणुस्सेहपमाणमेत्तं ओहिवासं वासंति त्ता कालागुरुपवरकुंदुरुक्कतुरुक्कधूवमघमधंतगंधुद्धयाभिरामं सुगंधवगंधियं गंधवट्टिभूतं दिव्व सुरवराभिगमणजोगं करंति कारयति खिय्यामेव उवसामंति त्ता जेणेव समणे भगवं महावीर तेणेव उवागच्छंति त्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव वंदित्ता नमंसित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियातो अंबसालवणातो चेइयाओ पडिनिक्खमंति त्ता ताए उक्किट्ठाए जाव वीइवयमाणे २ जेणेव सोहम्मे कथ्ये जेणेव सूरियाभे विमाणे जेणेव सभा सुहम्मा जेणेव सूरियाभे देवे तेणेव उवागच्छंतित्ता सूरियाभं देवंक्रयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिंक्टु जएणं विजएणं वद्धावेंति ॥ श्री राजप्रश्रीयोपांगम् ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121