Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भवणवइवाणमंतरजोइसियवेमाणिया देवा अरहंते भगवंते वंदंति नभसंति त्ता तओ साइं२णामगोयाइं साधिंति तं पोराणमयं देवा! जाव अभYण्णायमेयं देवा!३९तए णते आभिओगिया देवा समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ता सभाणा हट्ठजावहियया सभणं भगवं० वंदति णभसंति त्ता उत्तरपुरच्छिमं दिसीभागं अवकमंति त्ता वेउब्वियसमुग्धाएणं समोहणंति त्ता संखेजाई जोयणाई दंडं निस्सरंति तं०-रयणाणं जाव रिद्वाणं अहाबायरे पोग्गले परिसाडंति त्ता दोच्चंपि-वेउब्वियसमुग्धाएणं समोहणंति त्ता संवट्टवाए विउव्वंति, से जहानामए भइयदारए सिया तरुणे जुगवं बलवं (जुवाणे प्र०) अप्यायंके थिरसंघयणे थिरग्गहत्थे पडिपुण्णपाणिपायपिटुंतरोरुपरिणए घणनिचियववलियखंदे चम्भेटुगदुषणमुद्वियसभाहयगत्ते उरस्सबलसमण्णागए तलजमलजुयल (फलिहनिभ पा०) बाहू लंधणपवणजइणपमद्दणसमत्थे छेए दक्खे पटे कुसले मेहावी पिउणसिप्पोवगए एगं महं दंडसंपुच्छणिं वा सलागाहत्थगंवा वेणुसलाइयं वा गहाय रायंगणं वा रायंतेपुरं वा देवकुलं वा सभं वा एवं वा आरामं वा उजाणं वा/ अतुरियमचवलमसंभंते निरंतरं सुनिउणं सव्वतो समंता संपमज्जेजा एवामेवा तेऽवि सूरियाभस्स देवस्स आभिओगिया देवा संवट्टवाए। विउव्वंति त्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स सव्वतो समंता जोयणपरिमण्डलं जं किंचि तणं वा पत्तं वा तहेव सव्वं आहुणिय २ एगते एडेंति त्ता खिय्यामेव उवसमंति त्ता दोच्चंपि वेउव्वियसमुग्धाएणं सभोहणन्ति त्ता अब्भवद्दलए विउव्वन्ति से जहाणामए भइगदारगे सिया तरुणे जाव सिप्योवगए एगं महं दगवारगंवा दगथालगंवा दगकलसगंवा दगकुंभगंवा आरामं वा जाव पवं ॥ श्री राजप्रश्रीयोपांगम् ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private and Personal Use Only

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