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* This concludes the description of Kayaklesh tap. (The ascetic
disciples of Bhagavan Mahavir observed the aforesaid austerities.)
विवेचन-काय-क्लेश के अन्तर्गत किन्हीं प्रतियों में नैषधिक (नेसज्जिए) के पश्चात् दण्ड यतिक (दंडायइए) तथा लकुटशायी (लउडसाई) पद और प्राप्त होते हैं। दण्डायतिक का अर्थ है-दण्ड की तरह
सीधा लम्बा होकर खड़ा रहना। लकुटशायी का अर्थ है, लकुट-वक्र काष्ठ या टेढ़े लक्कड़ की तरह सोना, 2 इस आसन में मस्तक को तथा दोनों पैरों की एड़ियों को जमीन पर टिकाकर, देह के मध्य भाग को ऊपर उठाकर सोया जाता है। ऐसा करने से देह वक्र काष्ठ की तरह टेढ़ी हो जाती है।
इस तप को ‘काय-क्लेश' कहने का अभिप्राय यह लगता है कि दीखने में यह शरीर को कष्ट प्रतीत * होता है, सामान्य व्यक्ति इसीलिए इन्हें कष्टकारी मानते हैं, परन्तु जो आत्मलक्षी दृष्टि रखता है, शरीर से
भिन्न आत्मा के शुद्ध चैतन्य का दर्शन करता है, वह आत्म-संयम, इन्द्रिय-निग्रह तथा सहिष्णुता की वृद्धि के लिए इन सब उपायों को कष्टदायी नहीं मानता। वह तप के साथ किसी प्रकार के क्लेश की अनुभूति नहीं करता अपितु आत्मिक प्रसन्नता का अनुभव करता है। यदि इन तपों में केवल दैहिक-कष्ट की भावना रहेगी तो ये योग की क्रिया मात्र रह जायेंगे, तप कोटि में नहीं आयेगा।
Elaboration—In some alternative texts under the heading of Kayaklesh after Naishadyik (5) we also find Dandayaiye (Dandayatik) and Laudasaiye (Lakutashayi). Dandayaiye (Dandayatik) means to remain standing ramrod straight. Laudasaiye (Lakutashayi) means to lie like a 6 curved piece of wood. This posture is defined as-keep the body raised placing head and heals on the ground. This gives an appearance of curved piece of wood.
The reason for classifying this group of austerities as Kayaklesh (mortification of the body) appears to be that these austerities seem to be tortuous and painful to the body. It is so, indeed, for an ordinary person. But an aspirant who pursues the spiritual path and perceives the soul as pure consciousness separate from the body, considers these austerities to be the means of enhancing inner discipline, self control and endurance rather than painful. He does not feel any inconvenience in performing these austerities, on the contrary he experiences bliss. If these austerities are performed for the purpose of mortifying the body, they no longer remain austerities but just ritual yogic practices. (६) प्रतिसंलीनता तप
३०. (छ) से किं तं पडिसंलीणया ?
पडिसंलीणया चउब्विहा पण्णत्ता। तं जहा-१. इंदियपडिसंलीणया, २. कसायपडिसंलीणया, ३. जोगपडिसंलीणया, ४. विवित्तसयणासणसेवणया।
औपपातिकसूत्र
(88)
Aupapatik Sutra
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