Book Title: Agam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 301
________________ Ro90090050696 ok.ck.PROPQ ९०. (भगवान महावीर-) गौतम ! बहुत से लोग आपस में एक-दूसरे से जो ऐसा कहते हैं, प्ररूपित करते हैं कि अम्बड़ परिव्राजक काम्पिल्यपुर में एक साथ सौ घरों में आहार करता है, सौ घरों में निवास करता है, यह सच है। गौतम ! मैं भी ऐसा ही कहता हूँ, प्ररूपित करता हूँ कि अम्बड़ परिव्राजक यावत् (काम्पिल्यपुर नगर में एक साथ सौ घरों ' में आहार करता है, सौ घरों में) निवास करता है। BHAGAVAN'S REPLY 90. Gautam ! What many people say about Ambad Parivrajak living and eating in a hundred households at the same time is true. I too say and affirm that Ambad Parivrajak does so. ___ ९१. से केपट्टे णं भंते ! एवं वुच्चइ-परिवायए जाव वसहिं उवेइ ? ९१. (गौतम-) भंते ! अम्बड़ परिव्राजक के सम्बन्ध में सौ घरों में आहार करने तथा सौ घरों में निवास करने की जो बात कही जाती है, उसमें क्या रहस्य है? 91. Bhante ! What is the secret of this rumour-Many a people say... and so on up to... Kampilyapur city. ९२. गोयमा ! अम्मडस्स णं परिवायगस पगइभद्दयाए जाव विणीययाए छटुंछट्टेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्डे बाहाओ पगिज्झिय पगिझिय सूराभिमुहस्स 2 आयावणभूमिए आयावेमाणस्स सुभेणं परिणामेणं, पसत्थेहिं अज्झवसाणेहिं, पसत्थाहिं लेसाहिं विसुज्झमाणीहिं अन्नया कयाइ तदावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहा-वूहामग्गण-गवेसणं करेमाणस्स वीरियलद्धीए, वेउब्वियलद्धीए, ओहिणाणलद्धीए समुप्पण्णाए जणविम्हाणहेउं कंपिल्लपुरे णगरे घरसए जाव वसहिं उवेइ। से तेणटेणं गोयमा ! एवं बुच्चई-अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे णगरे घरसए जाव वसहिं उवेइ। ९२. गौतम ! यह अम्बड़ परिव्राजक प्रकृति से भद्र-सरल एवं शान्त है। स्वभावतः उसके क्रोध, मान, माया एवं लोभ अल्पतर हो चुके हैं। वह मृदुमार्दव गुण-सम्पन्न तथा गुरुजनों का आज्ञापालक एवं विनयशील है। उसने निरन्तर बेले-बेले (दो-दो दिनों) का उपवास करते हुए, अपनी भुजाएँ ऊँची उठाये, सूरज के सामने मुँह किए आतापना-भूमि में आतापना लेते हुए तप का अनुष्ठान किया है। अतः इस अम्बड़ परिव्राजक का शुभ परिणामों, पवित्र भावों, प्रशस्त अध्यवसाय-उत्तम मनःसंकल्पों, विशुद्ध होती हुई प्रशस्त लेश्याओं से आत्म-परिणामों की विशुद्धि होने से किसी समय वीर्य-लब्धि, वैक्रिय-लब्धि तथा अवधिज्ञान-लब्धि के आवरक कर्मों का क्षयोपशम हुआ। तब ईहा-सत्य अर्थ की अम्बड़ परिव्राजक प्रकरण (259) Story of Ambad Parivrajak पूर! * * * Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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