Book Title: Agam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 373
________________ १६५. ईसीपब्भारा णं पुढवी सेया आयंसतलविमल-सोल्लिय-मुणाल-दगरयतुसार-गोक्खीरहारवण्णा, उत्ताणयछत्तसंठाणसंठिया, सव्वज्जुणसुवण्णयमई, अच्छा, * सण्हा, लण्हा, घट्टा, मट्ठा, णीरया, णिम्मला, णिप्पंका, णिक्कंकडच्छाया, समरीचिया, सुप्पभा, पासादीया, दरिसणिज्जा, अभिरूवा, पडिरूवा। * १६५. वह ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी श्वेत है, दर्पणतल के जैसी निर्मल है, श्वेत पुष्प, * कमलनाल, तुषार, जल-बिन्दु (बर्फ), गाय के दूध तथा मुक्ताहार के समान श्वेत वर्ण वाली है। उलटे किए हुए छत्र जैसा उसका आकार है। वह अर्जुन स्वर्ण, श्वेत स्वर्ण-जैसी उज्ज्वल द्युतियुक्त है। वह आकाश या स्फटिक-जैसी स्वच्छ, श्लक्ष्ण (स्निग्ध), शुभ परमाणु-स्कन्धों से बनी होने के कारण कोमल तन्तुओं से बुने हुए वस्त्र के समान मुलायम, लष्ट-घुटे हुए वस्त्र के समान चिकनी, घृष्ट-तेज शाण पर घिसे हुए पत्थर की तरह मानो तराशी हुई चिकनी, मृष्ट-सुकोमल शाण पर घिसकर मानो पत्थर की तरह सँवारी हुई, * नीरज-रजरहित, निर्मल, निष्पंक-कर्दमरहित, आवरणरहित, समरीचिका-सुन्दर किरणों * की प्रभा से युक्त, प्रासादीय-चित्त को प्रसन्न करने वाली, दर्शनीय-देखने में आँखों को तृप्ति * देने वाली, अभिरूप-मनोज्ञ-मन को अपने में रमा लेने वाली तथा प्रतिरूप-मन में बस जाने * वाली है। * 165. That Ishatpragbhara Prithvi is white and faultless like anter * mirror. It is as white as Solliya flower, lotus stalk, dew, drop of fo water, snow, cow's milk and pearl necklace. Its shape is like an upturned umbrella. It has a brilliant glow like that of white gold. It is clean like sky or crystal; constituted of smooth particles; it is as soft as a piece of cloth made of fine fibre (shlakshna); it is gossamer * like polished cloth (lasht); it is smooth like a stone polished on a grinder (ghrisht); it is glossy as if honed on a fine honing wheel (mrisht); it is free of dust, dirt, and slime; it is without any cover; it is radiant with rays and it is delightful, spectacular, attractive and enchanting. १६६. ईसीपभाराए णं पुढवीए सेयाए जोयणमि लोगंते। तस्स जोयणस्स जे से उवरिल्ले गाउए, तस्स णं गाउयस्स जे से उवरिल्ले छ भागे, तत्थ णं सिद्धा भगवंतो सादीया, अपज्जवसिया अणेगजाइ-जरा-मरण-जोणि-वेयणं संसारकलंकलीभावपुणभव-गब्भवास-वसही-पवंचमइक्कंता सासयमणागयद्धं चिटुंति। अम्बड़ परिव्राजक प्रकरण (325) Story of Ambad Parivrajak * www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International

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