Book Title: Agam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 377
________________ १७५. जत्थ य एगो सिद्धो, तत्थ अणंता भवक्खयविमुक्का । अण्णोण्णसमोगाढा, पुट्ठा सव्वे य लोगंते ॥ ९ ॥ १७५. जिस सिद्ध क्षेत्र में एक सिद्ध भगवान रहते हैं, वहाँ भवक्षय - जन्म-मरण रूप सांसारिक आवागमन नष्ट हो जाने से मुक्त हुए अनन्त सिद्ध भगवान विराजमान हैं, जो परस्पर अवगाढ़-एक-दूसरे में मिले हुए हैं। वे सब लोकान्त का - लोकाग्र भाग का संस्पर्श किये हुए हैं, क्योंकि अलोक में धर्मास्तिकाय नहीं है, अतः लोक के आगे गति का अभाव है। 175. Where there is one Siddha, there are many who have been liberated (due to the termination of cyclic incarnations in mundane state) and they all exist fused together or in a state of assimilation, touching the edge of the universe. This is because in alok (unoccupied space) there is an absence of motion (dharmastikaya) and thus it is impossible for them to move beyond lok (occupied space). १७६. फुस अनंते सिद्धे, सव्वपएसेहि नियमसा सिद्धो । ते वि असंखेज्जगुणा, देसपएसेहिं जे पुट्ठा ॥१०॥ १७६. एक सिद्ध अपने समस्त आत्म- प्रदेशों (असंख्यात प्रदेशों) द्वारा दूसरे अनन्त सिद्धों का सम्पूर्ण रूप में संस्पर्श किये हुए स्थित हैं। इस प्रकार एक सिद्ध की अवगाहना में अनन्त सिद्धों की अवगाहना है- एक में अनन्त समाहित हो जाते हैं और उनसे भी असंख्यात गुण सिद्ध ऐसे हैं जो देशों और प्रदेशों से कतिपय भागों से एक-दूसरे में समाहित, एक-दूसरे का स्पर्श किये हुए हैं। तात्पर्य यह है कि अनन्त सिद्ध तो ऐसे हैं जो पूरी तरह एक-दूसरे में समाये हुए हैं और उनसे भी असंख्यात गुणित सिद्ध ऐसे हैं जो देश-प्रदेश से कतिपय अंशों में, एक-दूसरे में समाये हुए हैं। अमूर्त होने के कारण उनकी एक-दूसरे में अवगाहना होने में किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं होती । 176. One Siddha is stationed fully touching infinite number of Siddhas with all his soul-space-points (innumerable space-points). Thus the space occupied (avagahana) by one Siddha is also occupied by infinite Siddhas at the same time. In other words infinite Siddhas are assimilated within one. Innumerable times more than these are Siddhas who are in a state of partial mutual assimilation or contact of their soul-sections (desh) and soul-spacepoints (pradesh). अम्बड़ परिव्राजक प्रकरण Jain Education International (329) For Private & Personal Use Only Story of Ambad Parivrajak www.jainelibrary.org

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