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१८३. उसी प्रकार सिद्धों का सुख अनुपम है। सांसारिक पदार्थों से उसकी कोई उपमा र नहीं दी जा सकती। फिर भी (सामान्य जनों के बोध हेतु) विशेष रूप से उपमा द्वारा उसे समझाया जा रहा है।
183. In the same way the bliss of Siddhas is unparalleled and no suitable metaphors for it can be found in mundane things. Still an effort is being made to explain it with the help of some special metaphors (for the benefit of common people). - विवेचन-सूत्र १८२-१८३ में सिद्धों के अनुपम सुख के लिए वन में रहने वाले भील का दृष्टान्त दिया है। टीकाकारों ने इस स्थान पर निम्न दृष्टान्त का उल्लेख किया है___ एक राजा घूमने-फिरने का बड़ा शौकीन था। एक दिन अपने साथ कुछ सैनिक लेकर घोड़े पर सवार होकर वह वन-विहार के लिए निकला। उसका घोड़ा पवनगामी था। हवा से बातें करता था। अतः देखते-देखते ही राजा बहुत आगे निकल गया और सैनिक बहुत पीछे छूट गये।
ग्रीष्म ऋतु की कड़ी धूप पड़ रही थी, हवा कानों व शरीर को जला डालना चाहती थी। पशु-पक्षी भी ठण्डे छायादार जगत में शरण लिए पड़े थे। ऐसे कठिन काल में वह राजा अकेला पड़ गया और मार्ग भूल गया। घण्टों तक वह इधर-उधर भटकता हुआ मार्ग खोजता रहा, किन्तु मार्ग मिला ही नहीं। राजा थककर चूर-चूर हो गया। प्यास के मारे उसके प्राणों पर बन आई। ग्रीष्म की उस भयावह ऋतु में कहीं एक बूंद पानी भी उसे नहीं मिला। उसके प्राण छटपटाने लगे। अन्त में थक-हारकर, उसने एक छायादार वृक्ष के नीचे ठहरकर विश्राम करना चाहा, किन्तु वह इतना अशक्त हो चुका था कि अश्व पर से उतर भी न सका। वह गिर पड़ा और मूर्छित हो गया।
संयोगवश घूमता हुआ एक वनवासी भील युवक उस स्थान पर आ पहुँचा। उसने देखा कि एक पथिक मूर्छित पड़ा है। पास ही उसका सुन्दर घोड़ा खड़ा है। उसने अनुमान लगाया-'यह पथिक प्यास से व्याकुल होकर ही मूर्छित हुआ है। उसके पास शीतल जल था। जल के छींटे उसने राजा के मुख पर डाले। धीरे-धीरे राजा की चेतना लौटी। भील ने राजा को थोड़ा पानी पिलाया और बाद में कुछ कन्दमूल तथा रोटियाँ भी उसे खाने के लिए दीं। इस प्रकार राजा के प्राणों की रक्षा हुई।
राजा को वे रूखी-सूखी रोटियाँ अपने छप्पन भोगों से भी अधिक सुस्वादु और अमृततुल्य लगीं। भील के प्रति अत्यन्त कृतज्ञ होते हुए राजा ने कहा-"भैया ! आज तुमने मुझे नया जीवन दिया है। मुझ पर ऐसा उपकार किया है जिसे मैं जीवनभर भुला नहीं सकता।"
भोले भील ने राजा के ये उद्गार सुनकर सहज भाव से उत्तर दिया-“अरे भाई, इसमें उपकार की क्या बात है। भूखे और प्यासे राहगीर को रोटी-पानी देना तो हमारा धर्म है।"
उत्तर सुनकर राजा गद्गद हो उठा। जंगली कहे जाने वाले मनुष्य में भी मानवता का कैसा उज्ज्वल रूप निखर रहा है। उसने स्नेहपूर्वक भील के कन्धे पर हाथ रखा और कहा-“भाई ! तुम्हारे इस निः
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अम्बड़ परिव्राजक प्रकरण
(333)
Story of Ambad Parivrajak
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