Book Title: Agam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 389
________________ १८४-८५. जह सव्वकामगुणियं, पुरिसो भोत्तूण भोयणं कोई । तण्हा - छुहाविमुक्को, अच्छेज्ज जहा अमियतित्तो ॥ १८ ॥ इय सव्वकालतित्ता, अतुलं निव्वाणमुवगया सिद्धा । सासयमव्वाबाहं, चिट्ठति सुही सुहं पत्ता ॥ १९ ॥ १८४ - १८५. जैसे कोई पुरुष अपने द्वारा चाहे गये पाँचों इन्द्रियों को तृप्त करने वाले सभी गुणों-विशेषताओं से युक्त यथेच्छित भोजन कर भूख-प्यास से मुक्त होकर अमृतपान के समान अपरिमित तृप्ति का अनुभव करता है, उसी प्रकार सिद्ध भगवान सर्वकालतृप्तसर्वदा परम तृप्तियुक्त, अनुपम शान्तियुक्त-सदा काल स्थिर रहने वाला तथा सभी विघ्न-बाधाओं से रहित अव्याबाध - परम सुख में निमग्न रहते हैं । 184-185. If a person has tasted ambrosia and is free of all hunger and thirst, he feels amply satiated after eating desired food, having all qualities required to gratify all the five senses and in required quantity. In the same way a Siddha remains fully engulfed in the unobstructed and uninterrupted ultimate bliss that is ever satiating, extremely serene and absolutely permanent. १८६. सिद्धत्तिय बुद्धत्तिय, पारगयत्ति य परंपरगयत्ति । उम्मुक्ककम्मकवया, अजरा अमरा असंगा य ॥ २० ॥ १८६. वे सिद्ध हैं- उन्होंने अपने सारे प्रयोजन साध लिए हैं। वे बुद्ध हैं, केवलज्ञान द्वारा समस्त विश्व का बोध उन्हें प्राप्त है । वे पारगत हैं, संसार-सागर को पार कर चुके हैं। वे परम्परागत हैं, वे परम्परा से प्राप्त मोक्ष के उपायों का अवलम्बन कर संसार - सागर के पार पहुँचे हुए हैं, वे उन्मुक्त - कर्मकवच हैं, जो कर्मों का कवच - आवरण उन पर लगा था, उससे वे मुक्त हो चुके हैं। वे अजर हैं, वृद्धावस्था से रहित हैं। अमर हैं, मृत्यु के पार के पहुँच गये हैं, तथा वे असंग हैं, सब प्रकार की आसक्तियों से तथा समस्त पर -1 र-पदार्थों के संसर्ग से रहित हैं। 186. They are Siddhas (perfect ones) as they have attained all their goals. They are Buddhas (enlightened ones) as they know all that is to know through omniscience. They are Paragat (accomplished ones) as they have crossed the ocean of mundane existence. They are Paramparagat (adept ones) as they have attained salvation from cycles of rebirth following the traditional अम्बड़ परिव्राजक प्रकरण Story of Ambad Parivrajak Jain Education International (339) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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