Book Title: Agam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 343
________________ returnable things like bed, living quarters, hay for making bed etc. d to Shraman-nirgranths, they lead a pious life. The Leading such pious life they finally take the ultimate vow (samlekhana) and observe a long period of fasting doing critical review of the transgressions committed. Doing so, at the time of death, they abandon this earthly body in the state of meditation. Abandoning this body they reincarnate as gods in the lofty Achyutkalp. Their state (gati) is according to their respective status. Their life-span there is upto twenty two Sagaropam (a metaphoric unit of A time). They are true aspirants for next birth. (rest of the details as already mentioned.) १ आरम्भ त्यागी श्रमणों का मोक्ष १२४. से जे इमे गामागर जाव सण्णिवेसेसु मणुया भवंति, तं जहा-अणारंभा, अपरिगहा धम्मिया जाव कप्पेमाणा सुसीला, सुब्बया, सुपडियाणंदा, साहू, सबाओ पाणाइवायाओ पडिविरया, जाव सव्वाओ परिग्गहाओ पडिविरया, सबाओ, कोहाओ, माणाओ, मायाओ, लोभाओ जाव मिच्छादसणसल्लाओ पडिविरया, सव्वाओ आरंभसमारंभाओ पडिविरया, सव्वाओ करण-कारावणाओ पडिविरया, सव्वाओ पयणपयावणाओ पडिविरया, सव्वाओ कोट्टण-पिट्टण-तज्जण-तालण-वह-बंध परिकिलेसाओ पडिविरया, सव्वाओ पहाण-मद्दण-वण्णग-विलेवण-सद्द-फरिस६ रस-रूव-गंध-मल्लालंकाराओ पडिविरया, जे यावण्णे तहप्पगारा सावज्जजोगोवहिया कम्मंता परपाणपरियावणकरा कज्जति, तओ वि पडिविरया जावज्जीवाए। १२४. ग्राम, आकर, सन्निवेश आदि में जो ये मनुष्य रहते हैं, उनमें से कई एक मनुष्य साधु होते हैं। आरम्भरहित होते हैं। परिग्रह के त्यागी होते हैं। धार्मिक होते हैं यावत् धर्म का A अनुसरण करने वाले, धर्मिष्ट तथा धर्मपूर्वक आजीविका चलाने वाले होते हैं। सुशील, सुव्रत-व्रतों का निर्दोष पालन करने वाले, जिनका चित्त सदा धर्मध्यान से आनन्द आल्हादयुक्त रहता हो, वे जीवनभर के लिए सम्पूर्णतः सब प्रकार की हिंसा (यावत् सम्पूर्णतः असत्य आदि) तथा समस्त परिग्रह से विरक्त होते हैं, वे सभी प्रकार के क्रोध से, मान से, 2 माया से, लोभ से यावत् मिथ्यादर्शनशल्य से विरक्त होते हैं, सब प्रकार के आरम्भ-समारम्भ 3 से निवृत्त होते हैं, करने तथा कराने से सम्पूर्णतः विरक्त होते हैं। सब प्रकार पचन-पाचन की क्रियाओं से विरक्त होते हैं। कूटने, पीटने, तर्जित करने, ताडित करने, किसी के प्राण लेने, POPPOISORIGORYGORIG000IG8XORIGORIGORYHORTHORTHORTHORVAORNADAYADAYAORTAORMAORMAOINORNOWowIONAOMIOwronwonwromotinnition १ अम्बड़ परिव्राजक प्रकरण (297) Story of Ambad Parivrajak For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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