Book Title: Agam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 359
________________ choose the clock sl slok, seshastoor गोयमा ! सच्चवइजोगं जुंजइ, णो मोसवइजोगं जुंजइ, णो सच्चामोसवइजोगं जुंजइ, असच्चामोसवइजोगं पि जुंजइ । १४८. भगवन् ! वे केवली भगवानवचन योग को काम में लेते हुए क्या सत्य वचनयोग का प्रयोग करते हैं? क्या मृषा वचनयोग को प्रयुक्त करते हैं ? अथवा असत्य-अमृषा वचनयोग को प्रयुक्त करते हैं ? गौतम ! वे सत्य वचनयोग का प्रयोग करते हैं । किन्तु न तो असत्य वचनयोग का प्रयोग करते हैं, न वे सत्य - मृषा वचनयोग का ही प्रयोग करते हैं परन्तु वे असत्य - अमृषा - वचनयोग का भी प्रयोग करते हैं । 148. Bhante ! After concluding the samudghat process, while performing activities of the speech (vachan yoga) does a Kevali use association based on truth or untruth or truth-untruth or nontruth-non-untruth ? Gautam ! A Kevali uses speech-association based on truth. He does not use speech-association based on untruth or truthuntruth. However, he uses that based on non-truth-non-untruth? १४९. कायजोगं जुंजमाणे आगच्छेज्ज वा, चिट्टेज्ज वा, णिसीएज्ज वा, तुयट्टेज्ज वा, उल्लंघेज्ज वा, पलंघेज्ज वा, उक्खेवणं वा, अवक्खेवणं वा, तिरियक्खेवणं वा करेज्जा पाsिहारियं वा पीढफलगसेज्जासंथारगं पच्चप्पिणेज्जा । १४९. समुद्घात से निवृत्त केवली भगवान काययोग में प्रवृत्ति करते हुए आगमन करते हैं, ठहरते हैं, बैठते हैं, लेटते हैं, लाँघते हैं - उलाँघते हैं, उत्क्षेपण - अवक्षेपण तथा तिर्यक्क्षेपन करते हैं - हाथ आदि को ऊपर करते हैं, नीचे करते हैं, तिरछे या आगे-पीछे करते हैं अथवा ऊँची, नीची और तिरछी गति करते हैं तथा प्रातिहारिक - काम में लेने के बाद वापस लौटाने योग्य पट्ट, शय्या, संस्तारक आदि उपकरण लौटाते हैं। 149. After concluding the samudghat process, while performing activities of the body (kayayoga) a Kevali comes, stays, sits, lies down, crosses, goes across, moves up-down and sideways (or moves his hands up-down and sideways) as well as returns plank, bed, ascetic-broom and other returnable ascetic-equipment. सिद्धावस्था - प्राप्ति का क्रम १५०. से णं भंते ! तहा सजोगी सिज्झइ, जाव (बुज्झइ, मुच्चइ, परिणिव्वाइ, दुक्खाणं) अंतं करेइ ? अम्बड़ परिव्राजक प्रकरण Jain Education International (313) For Private & Personal Use Only सव्व Story of Ambad Parivrajak www.jainelibrary.org

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