Book Title: Agam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 370
________________ This world is four million five hundred thousand (45,00,000) Yojans long and wide with a circumference of slightly more than fourteen million two hundred thirty thousand two hundred forty nine (1,42,30,249) Yojans. १६३. ईसीपब्भाराएं णं पुढवीए बहुमज्झदेसभाए अट्ठजोयणिए खेत्ते अट्ठ जोयणाई बाहल्लेणं, तयाणंतरं च णं मायाए मायाए परिहायमाणी सव्वेसु चरिमपेरंतेसु मच्छियपत्ताओ तणुयतरा अंगुलस्स असंखेज्जइभागं बाहल्लेणं पण्णत्ता । १६३. ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी अपने ठीक मध्य भाग में आठ योजन मोटी है। तत्पश्चात् मोटाई में क्रमशः कुछ-कुछ कम होती हुई सबसे अन्तिम किनारों पर मक्खी की पाँख से भी अधिक पतली है। उन अन्तिम किनारों की मोटाई अंगुल के असंख्यातवें भाग के तुल्य कही गई है। 163. Ishatpragbhara Prithvi is eight Yojans deep at the center, tapering down to the thickness of the wings of a house-fly at its periphery. It is said that the thickness of these edges is equal to the innumerable fraction of an Angul. ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी के बारह नाम १६४. ईसीपब्भाराए णं पुढवीए दुवालस णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा - ईसी इ वा, ईसीपब्भारा इवा, तणू इ वा, तणुतणू इवा, सिद्धी इ वा, सिद्धालए इ वा, मुत्ती इवा, इवा, लोगे इवा, लोयग्गभिगा इवा, लोयग्गपडिबुज्झणा इवा, सव्वपाणभूय - जीव - सत्तसुहावहा इ वा । १६४. ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी के बारह नाम कहे गये हैं, जो इस प्रकार हैं (१) ईषत्, (२) ईषत्प्राग्भारा, (३) तनु, (४) तनुतनु, (५) सिद्धि, (६) सिद्धालय, (७) मुक्ति, (८) मुक्तालय, (९) लोकाग्र, (१०) लोकाग्रस्तूपिका, (११) लोकाग्रप्रतिबोधना, (१२) सर्वप्राणभूतजीवसत्त्वसुखावहा । TWELVE NAMES OF ISHATPRAGBHARA PRITHVI 164. Ishatpragbhara Prithvi is said to have twelve names. They are as follows (1) Ishat, (2) Ishatpragbhara, (3) Tanu, (4) Tanutanu, (5) Siddhi, (6) Siddhalaya, (7) Mukti, (8) Muktalaya, (9) Lokagra, (10) Lokagrastupika, (11) Lokagrapratibodhana, (12) Sarva-praanbhoot-jiva-sattva-suhhavaha. औपपातिकसूत्र Jain Education International (324) For Private & Personal Use Only Aupapatik Sutra www.jainelibrary.org

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