Book Title: Agam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 360
________________ णो इट्टे सम । १५०. भगवन् ! वे केवली भगवान क्या सयोगी अवस्था में सिद्ध होते हैं (बुद्ध होते हैं, मुक्त होते हैं, परिनिर्वृत्त होते हैं, परिनिर्वाण को प्राप्त करते हैं) एवं सब दुःखों का अन्त करते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता । PROGRESS TO PERFECTION 150. Bhante ! While still in this aforesaid state of association (sayogi avastha), does a Kevali become Siddha (attain the state of perfection), Buddha ( enlightened ), Mukta ( liberated) and attain nirvana to end all miseries? No, Gautam ! This does not happen. १५१. से णं पुव्वामेव सण्णिस्स पंचिंदियस्स पज्जत्तगस्स जहण्णजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीणं पढमं मणजोगं निरुंभइ, तयाणंतरं च णं बिंदियस्स पज्जत्तगस्स जहण्णजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीणं बिइयं वइजोगं निरुंभइ, तयाणंतरं च णं सुहुमस्स पणगजीवस्स अपज्जत्तगस्स जहण्णजोगस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीणं तइयं कायजोगं णिरंभ इ । १५१. वे सयोगी केवली भगवान सबसे पहले पर्याप्त संज्ञी - पंचेन्द्रिय जीव के जघन्य मनोयोग के भी नीचे के स्तर से असंख्यात गुणहीन मनोयोग का निरोध करते हैं, अर्थात् इतना सूक्ष्म मनोव्यापार उनके बाकी रहता है। उसके बाद पर्याप्त द्वीन्द्रिय जीव के जघन्य वचनयोग के नीचे के स्तर से असंख्यात गुणहीन वचनयोग का निरोध करते हैं। उसके पश्चात् अपर्याप्त-सूक्ष्म पनक - लीलन - फूलन आदि निगोदिया जीव के जघन्य योग के नीचे के स्तर से असंख्यात गुणहीन काययोग का निरोध करते हैं । 151. That Sayogi Kevali first of all, restricts the residual activities associated with mind which are of the order of an infinite fraction of the minimum mental activity of a fully developed five sensed sentient being; which means that he was left with only such a minute mental activity. After that he restricts the residual activities associated with speech which are of the order of an infinite fraction of the minimum mental activity of a fully developed two sensed being. Then he restricts the residual activities associated with body औपपातिकसूत्र Aupapatik Sutra Jain Education International (314) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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