Book Title: Agam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 353
________________ order to balance these karmas, disproportionate in terms of intensity and periodicity. For that purpose they launch the process । of bursting and rarefying the soul-space-points. १४१. सब्बे वि णं भंते ! केवली समुग्घायं गच्छंति ? णो इणढे समढे; अकित्ता णं समुग्घायं, अणंता केवली जिण। जरामरणविप्पमुक्का, सिद्धिं वरगइं गया॥ १४१. भगवन् ! क्या सभी केवली-समुद्घात करते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं है। समुद्घात किये बिना ही अनन्त केवली, जिन-(वीतराग) जरा और मृत्यु से सर्वथा मुक्त होकर सिद्धावस्था रूप सर्वोत्कृष्ट गति को प्राप्त हुए हैं। (समुद्घात वे ही करते हैं, जिनके विषय में सूत्र १४० लागू होता है।) ____141. Bhante ! Do all Kevalis undergo the process of Kevalisamudghat ? Gautam ! That is not true. Without undertaking samudghat infinite Kevali Jinas (detached omniscients) have got themselves liberated from ageing and death and attained the most exalted state of perfection (Siddha). (Samudghat is undertaken only by those to whom conditions described in aphorism 140 are applicable.) समुद्घात का स्वरूप १४२. कइसमए णं भंते ! आउज्जीकरणे पण्णत्ते ? गोयमा ! असंखेज्जसमइए अंतोमुहुत्तिए पण्णत्ते। १४२. भगवन् ! यह मोक्ष-प्राप्ति का आवर्जीकरण-बँधे हुए कर्मों को उदयावस्था में से लाने का प्रक्रियाक्रम कितने समय का कहा गया है ? गौतम ! वह असंख्येय समयवर्ती अन्तर्मुहूर्त का कहा गया है। NATURE OF SAMUDGHAT 142. Bhante ! What is said to be the time required to bring the e karmas fused to the soul to the state of fruition (avarjikaran)? अम्बड़ परिव्राजक प्रकरण (307) Story of Ambad Parivrajak Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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