Book Title: Agam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 352
________________ . 26 १३९. आयुष्मान् श्रमणो ! वे पुद्गल अत्यन्त सूक्ष्म होते हैं। वे समग्र लोक का स्पर्श ka कर स्थित रहते हैं। ____139. Long lived Shramans ! Those particles are extremely subtle. They exist in a touching state and enveloping the entire lok * (occupied space or universe). केवली-समुद्घात का हेतु १४०. कम्हा णं भंते ! केवली समोहणंति ? कम्हा णं केवली समुग्घायं गच्छंति ? • गोयमा ! केवली णं चत्तारि कम्मंसा अपलिक्खीणा भवंति, तं जहा-१. वेयणिज्जं, २. आउयं, ३. णामं, ४. गोत्तं। सव्वबहुए से वेयणिज्जे कम्मे भवइ। सव्वत्थोए से आउए कम्मे भवइ। विसमं समं करेइ बंधणेहिं ठिईहि य। एवं खलु केवली समोहणंति, एवं खलु, केवली समुग्घायं गछंति। १४०. भगवन् ! केवली किस कारण समुद्घात करते हैं-किस कारण आत्म-प्रदेशों * को फैलाते हैं। ___ गौतम ! केवलियों के वेदनीय, आयुष्य नाम तथा गोत्र-ये चार कर्मांश-कर्म दलिक । * अपरिक्षीण रहते हैं-पूर्णतः क्षीण नहीं होते, उनमें वेदनीय कर्म सबसे अधिक होता है, a आयुष्य कर्म सबसे कम होता है। बन्धन एवं स्थिति द्वारा विषम कर्मों को वे सम करते हैं। बन्धन एवं स्थिति की दृष्टि से विषम कर्मों को सम करने हेतु केवली-समुद्घात् करते हैं। * आत्म-प्रदेशों को फैलाते हैं। THE PURPOSE OF KEVALI SAMUDGHAT og 140. Bhante ! Why does a Kevali undertake the process of Kevali * samudghat ? Why does he acquire the rarefied state of soul-space* points ? Gautam ! Parts of four kinds of karmas of Kevalis are not completely shed or destroyed; they are vedaniya (karma that causes feelings of happiness or misery), ayushya (karma that determines the span of a given life-time), naam (karma that determines the destinies and body types) and gotra (karma responsible for the ka higher or lower status of a being). Of these residual karmas, vedaniya is maximum and ayushya is minimum. They have to equate these disproportionate karmas in terms of intensity and periodicity. They undertake the process of Kevali samudghat in औपपातिकसूत्र (306) Aupapatik Sutra LATOPATOPAYOYADUATOPATOVADVAIDAOUNDAVALUANOUNLOINDIANUARY For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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