Book Title: Agam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 332
________________ ५. घरसमुदाणिया, ६. विज्जयंतरिया, ७. उट्टिया समणा, ते णं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणा बहूई वासाइं परियायं पाउणित्ता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववत्तारो भवंति, तर्हि तेसिं गई, बावीसं सागरोवमाई ठिई, अणाराहगा, * सेसं तं चेव। म ११९. ग्राम, आकर, सन्निवेश आदि में जो आजीवक-(गौशालक मतानुयायी) होते हैं, * जैसे-(१) दो घरों के अन्तर से-दो घर छोड़कर भिक्षा लेने वाले, (२) तीन घर छोड़कर * भिक्षा लेने वाले, (३) सात घर छोड़कर भिक्षा लेने वाले, (४) भिक्षा में केवल कमल-डंठल ग्रहण करने वाले, (५) प्रत्येक घर से भिक्षा लेने वाले, (६) जब बिजली चमकती हो तब भिक्षा नहीं लेने वाले, (७) मिट्टी से बने नाँद जैसे बड़े बर्तन में बैठकर तप करने वाले, * वे ऐसे आचार का पालन करते हुए-बहुत वर्षों तक आजीवक-पर्याय का पालन कर, ॐ मृत्युकाल आने पर मरण प्राप्त कर, उत्कृष्ट अच्युत कल्प (बारहवें देवलोक) में देव रूप में * उत्पन्न होते हैं। वहाँ अपने स्थान के अनुरूप उनकी गति होती है। उनकी स्थिति बाईस * सागरोपम-प्रमाण होती है। वे आराधक नहीं होते। (शेष वर्णन पूर्ववत् है।) THE UPAPAT OF AJIVAKS * 119. In places like gram, aakar,... and so on up to... sannivesh there live a variety of Ajivaks (followers of Gaushalak), such as(1) those who collect alms from every third house on the way, (2) those who collect alms from every fourth house on the way, (3) those who collect alms from every eighth house on the way, * (4) those who accept only lotus stalk as alms, (5) those who collect * alms from every house on the way, (6) those who do not accept alms He when lightening occurs, and (7) those who sit in a large earthen tub for their spiritual practices. They spend years as Ajivaks following the Ajivak code. When time comes, they abandon their earthly bodies and are born as gods in the lofty Achyut-kalp (the twelfth ro heaven). Their state (gati) is according to their respective status. Their life-span there is upto twenty two Sagaropam (a metaphoric unit of time). Other details are same as already mentioned. आत्मोत्कर्षक आदि प्रव्रजित श्रमणों का उपपात १२०. से जे इमे गामागर जाव सण्णिवेसेसु पव्वइया समणा भवंति, तं जहा अत्तुकोसिया, परपरिवाइया, भूइकम्मिया, भुजो-भुज्जो कोउयकारगा, ते णं एयारूवेणं * औपपातिकसूत्र (286) Aupapatik Sutra Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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