Book Title: Agam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 333
________________ BSPRSIDEOGHORToptAORIAORaoni विहारेणं विहरमाणा बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणंति, पाउणित्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयअपडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं अच्चुएकप्पे आभिओगिएसु देवेसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति। तहिं तेसिं गई, बावीसं सागरोवमाई ठिई, परलोगस्स अणाराहगा, सेसं तं चेव। १२०. ग्राम, आकर, सन्निवेश आदि में जो प्रव्रजित श्रमण होते हैं, जैसे-आत्मोत्कर्षकअपना उत्कर्ष दिखाने वाले-अपनी प्रशंसा करने वाले, परपरिवादक-दूसरों की निन्दा करने वाले, भूतिकर्मिक-ज्वर आदि रोगग्रस्त लोगों की बाधा तथा उपद्रव शान्त करने हेतु अभिमन्त्रित भस्म आदि देने वाले, कौतुककारक-भाग्योदय आदि के निमित्त चमत्कारिक बातें बताने वाले। वे इस प्रकार की चर्या रखते हुए बहुत वर्षों तक श्रमणपर्याय का पालन करते हैं। अपने गृहीत श्रमण-पर्याय का पालन कर वे अन्ततः अपने कृत पापस्थानों की आलोचना निन्दा नहीं करते हुए, उनका प्रतिक्रमण नहीं करते हुए, मृत्युकाल आने पर शरीर त्यागकर उत्कृष्ट अच्युतकल्प में आभियोगिक-सेवक वर्ग के देवों में देव रूप में उत्पन्न होते हैं। वहाँ अपने स्थान के अनुरूप उनकी गति होती है। उनकी स्थिति बाईस सागरोपम-प्रमाण होती है। वे परलोक के आराधक नहीं होते। (शेष वर्णन पूर्ववत्।) . THE UPAPAT OF ATMOKARSHAK AND OTHER INITIATED SHRAMANS ___120. In places like gram, aakar,... and so on up to... sannivesh there live some initiated Shramans who are indulging in self-praise (Atmokarshak), who criticize others (Parparivadak), who distribute consecrated ash and other such things for removing ailments and other problems of people (Bhootikarmik), and who claim expertise in miraculously bringing good luck to people. For many years they live as Shramans following the aforesaid ways. They neither repent (doing critical review or pratikraman) nor atone before the guru for their sinful deeds. When time comes they abandon their earthly bodies and are born as Abhiyogik gods (servant gods) in the lofty Achyut-kalp (the twelfth heaven). Their state (gati) is according to their respective status. Their life-span there is upto twenty two Sagaropam (a metaphoric unit of time). They do not aspire for next es birth (because they do not atone for their sins). (rest of the details as already mentioned) अम्बड़ परिव्राजक प्रकरण (287) Story of Ambad Parivrajak Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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