Book Title: Agam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 334
________________ निह्नवों का उपपात १२१. से जे इमे गामागर जाव सण्णिवेसेसु णिण्हगा भवंति, तं जहा-१. बहुरया, २. जीवपएसिया, ३. अव्वत्तिया, ४. सामुच्छेइया, ५. दोकिरिया, ६. तेरासिया, ७. अबद्धिया इच्चेते सत्त पवयणणिण्हगा, केवलचरियालिंगसामण्णा, मिच्छाद्दिट्टि बहूहिं ॐ असब्भावुब्भावणाहिं मिच्छत्ताभिणिवेसेंहि य अप्पाणं च परं च तदुभयं च बुग्गाहेमाणा, * वुप्पाएमाणा विहरित्ता बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणंति, पाउणित्ता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं उवरिमेसु गेवेज्जेसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति। तहिं तेसिं गई, एक्कतीसं सागरोवमाइं ठिई, परलोगस्स अणाराहगा, सेसं तं चेव।। १२१. ग्राम, आकर, सन्निवेश आदि में जो ये निह्नव होते हैं, जैसे-(१) बहुरत, (२) जीवप्रादेशिक, (३) अव्यक्तिक, (४) सामुच्छेदिक, (५) द्वैक्रिय, (६) त्रैराशिक, तथा (७) अबद्धिक, वे सातों ही जिन-प्रवचन-वीतराग वाणी का अपलाप करने वाले या विपरीत प्ररूपणा करने वाले होते हैं। वे केवल चर्या-भिक्षायाचना आदि बाह्य क्रियाओं में * तथा लिंग-रजोहरण आदि चिन्हों में श्रमणों के समान दीखते हैं। वे मिथ्यादृष्टि हैं। जिनका कोई सद्भाव या अस्तित्त्व नहीं है, ऐसे अविद्यमान पदार्थों या तथ्यों की उद्भावना* निराधार परिकल्पना द्वारा, मिथ्यात्व अभिनिवेश द्वारा अपने को, औरों को-दोनों को ही * दुराग्रह में डालते हुए, जिन-प्रवचन के प्रतिकूल प्ररूपणा करते हुए बहुत वर्षों तक श्रमण पर्याय का पालन करते हैं। श्रमण-पर्याय का पालन कर, मृत्युकाल आने पर शरीर त्यागकर उत्कृष्ट ग्रैवेयक देवों में देव रूप में उत्पन्न होते हैं। वहाँ अपने स्थान के अनुरूप उनकी गति * होती है। वहाँ उनकी स्थिति इकतीस सागरोपम प्रमाण होती है। वे परलोक के आराधक * नहीं होते। (शेष वर्णन पूर्ववत् समझें।) THE UPAPAT OF NIHNAVAS ___121. In places like gram, aakar,... and so on up to... sannivesh there live some nihnavas (mendacious seceders), such as(1) Bahurat, (2) Jivapradeshik, (3) Avyaktik, (4) Samuchhedik, (5) Dvaikriya, (6) Trairashik, and (7) Abaddhik. These seven are dissenters to the sermon of the Jina and present an opposing view. They are Shramans only in their charya or praxis (alms-seeking and other outward activities) and ling or appearance (garb and equipment). They have false perception and belief (mithyadrishti). For many years they live as Shramans misguiding themselves and others with baseless theories about non-existent things and औपपातिकसूत्र (288) Aupapatik Sutra URUPYAYOYAYYALOYAYOYAYOYALYALYAYOYALYALYALYALYALPAPALPALINOXIMIALOPXOMAXXXARA ARARNOWROOS MA For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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