Book Title: Agam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 310
________________ along while crossing a difficult terrain. Durbhikshbhakt (dubbhikkhabhatte)-food prepared for distributing to beggars and destitute during a drought. Glanbhakt (gilaanbhatte)-food meant for the sick. Vardalikbhakt (vaddaliyabhatte)-food prepared and kept for distributing during periods of heavy rain, floods and other such calamities. Praghoornakbhakt (pahunagabhatte)-food meant for guests. In the same way, Ambad Parivrajak considers it forbidden to eat or drink anything having roots (bulbous roots, fruits, green leaves) and seeds. ९७. अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स चउव्विहे अणट्ठदंडे पच्चक्खाए जावज्जीवाए । तं जहा -अवज्झाणायरिए, पमायायरिए, हिंसप्पयाणे, पावकम्मोवएसे । ९७. अम्बड़ परिव्राजक ने चार प्रकार के अनर्थदण्डों का जीवन पर्यन्त के लिए परित्याग किया है। वे चार अनर्थदण्ड इस प्रकार हैं - ( १ ) अपध्यानाचरित, (२) प्रमादाचरित, (३) हिंस्रप्रदान, एवं (४) पापकर्मोपदेश । 97. Ambad Parivrajak has renounced four kinds of activities leading to unnecessary harm to others (anarth-dand). They are— (1) apadhyanacharit, (2) pramadacharit, (3) himsrapradan, and (4) paapkarmopadesh. विवेचन - बिना किसी विशेष उद्देश्य या प्रयोजन के जो हिंसा की जाती है, उसे अनर्थदण्ड माना जाता है । प्रस्तुत सूत्र में सूचित चार प्रकार के अनर्थदण्ड की संक्षिप्त व्याख्या इस प्रकार है (१) अपध्यानाचरित - अर्थात् दुश्चिन्तन । दुश्चिन्तन दो प्रकार का है - आर्त्तध्यान तथा रौद्रध्यान । इन दोनों तरह से होने वाला दुश्चिन्तन अपध्यानाचरित रूप अनर्थदण्ड है। (२) प्रमादाचरित - अपने धर्म व कर्त्तव्य के प्रति उपेक्षा, असावधानी प्रमाद है; अथवा मद्य, विषय, कषाय, निद्रा और विकथा रूप आचरण प्रमाद हैं । इनसे सम्बद्ध मन, वचन तथा शरीर के विकार प्रमादाचरित में आते हैं। (३) हिंस्रप्रदान- हिंसा के कार्यों में साक्षात् सहयोग करना, जैसे-चोर, डाकू तथा शिकारी आदि को हथियार देना, आश्रय देना तथा दूसरी तरह से सहायता करना । (४) पापकर्मोपदेश - दूसरों को पाप-कार्य में प्रवृत्त होने में प्रेरणा, उत्तेजना, उपदेश या परामर्श देना। Elaboration-Any act of violence committed unnecessarily or without any specific purpose is called anarth-dand. Brief description of its four kinds stated in this aphorism are औपपातिकसूत्र Jain Education International (266) For Private & Personal Use Only Aupapatik Sutra ९०७५०१.९.१९.१९.१९.१९.१.१.बह जब बब बब बब www.jainelibrary.org

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