Book Title: Agam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 311
________________ CORDDYA (1) Apadhyanacharit— This means bad or wrong thinking. This again is of two kinds-arttadhyan (tormented thoughts or grief) and raudradhyan (agitated thoughts or anger). These two kinds of bad thoughts are called apadhyanacharit anarth-dand. (2) Pramadacharit-Negligence and inattentiveness towards one's religion and duty is pramad (stupor). Indulgence in alcoholism, carnal pleasures, passions, sleep and gossiping is also pramad (stupor). Mental, vocal and physical perversions related to these are included in pramadacharit anarth-dand. (3) Himsrapradan - Direct involvement in acts of violence, such as providing weapons, shelter and other help to thieves, bandits, hunters, and other such people is called himsrapradan anarth-dand. (4) Paapkarmopadesh-To inspire, provoke, preach or advise others to indulge in sinful activities is called paapkarmopadesh anarth-dand. ९८. अम्मडस्स कप्पइ मागहए अद्धाढए जलस्स पडिग्गाहित्तए से वि य वहमाणए, णो चेव णं अवहमाणए जाव से वि य परिपूए, णो चेव णं अपरिपूए, से वि य सावज्जे त्ति काउं णो चेव णं अणवज्जे, से वि य जीवा ति काउं, णो चेव णं अजीवा, सेविय दिणे, णो चेव णं अदिण्णे, से वि य हत्थपाय - चरु - चमस - पक्खालणट्टयाए पिबित्तए वा, णो चेव णं सिणाइत्तए । अम्मडस्स कम्पइ मागहए य आढए जलस्स पडिग्गाहित्तए, से वि य वहमाणए जाव णो चेव णं अदिण्णे, से वि य सिणाइत्तए णो चेव णं हत्थ - पाय - चरु - चमसपखालणट्टयाए पबित्तए वा । ९८. उस अम्बड़ को मागधमान-मगध देश के तोल के अनुसार आधा आढक (दो प्रस्थ प्रमाण) जल लेना कल्पता है। वह भी प्रवहमान (बहता हुआ ) हो, अप्रवहमान नहीं हो। ( सूत्र ८० के अनुसार) वह भी परिपूत - वस्त्र से छाना हुआ हो तो कल्प्य है, अनछाना नहीं। वह भी सावद्य मानकर लेता है, निरवद्य मानकर नहीं । सावद्य भी वह सजीव समझकर ही लेता है, अजीव समझकर नहीं । वैसा जल भी दिया हुआ ही कल्पता है, बिना दिया हुआ नहीं। वह भी हाथ, पैर, चरु, चमस, चम्मच आदि धोने के लिए या पीने के लिए ही कल्पता है, नहाने के लिए नहीं । (विशेष) इस अम्बड़ को मागधमान के अनुसार एक आढक प्रमाण पानी लेना कल्पता है । वह भी बहता हुआ, यावत् दिया हुआ ही कल्पता है, वह भी स्नान के लिए लेना कल्पता है, हाथ, पैर, चरु, चमस धोने के लिए या पीने के लिए नहीं । अम्बड़ परिव्राजक प्रकरण Jain Education International (267) For Private & Personal Use Only Story of Ambad Parivrajak. www.jainelibrary.org

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