Book Title: Agam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 298
________________ बोलना ) तथा मिथ्यादर्शन शल्य का जीवन - पर्यन्त के लिए परित्याग करते हैं। अकरणीय योग - मन, वचन तथा शरीर की नहीं करने योग्य क्रिया का त्याग करते हैं। अशन, पान, खादिम, स्वादिम- इन चारों प्रकार के आहारों का जीवनभर के लिए परित्याग करते हैं। यह शरीर, जो हमको इष्ट-वल्लभ, कान्त, प्रिय - प्यारा, मनोज्ञ - सुन्दर, मनाम - मन में बसा रहने वाला, प्रेय- अतिशय प्रिय हैं, प्रेज्य - विशेष मान्य, स्थैर्यमय - अस्थिर होते हुए भी अज्ञानवश स्थिर प्रतीत होने वाला है, वैश्वासिक - विश्वसनीय ( पर - शरीर की अपेक्षा अपना शरीर अधिक विश्वास योग्य लगता है ऐसा विश्वसनीय), सम्मत, बहुमत - बहुत माना हुआ, अनुमत, आभूषणों की पेटी के समान ( प्रेम का पात्र) प्यारा है। इस मेरे शरीर को सर्दी न लग जाये, गर्मी न लग जाये, यह भूखा न रह जाये, प्यासा न रह जाये, इसे साँप न डस ले, चोर उपद्रव न करें-डांस न काटें, मच्छर न काटें, वात, पित्त (कफ), सन्निपात आदि विविध रोगों द्वारा तत्काल मार डालने वाली बीमारियों द्वारा यह पीड़ित न हो इसे परीषह - भूख प्यास आदि कष्ट तथा उपसर्ग - देवादि कृत संकट न हों। जिसके लिए हर समय ऐसा ध्यान रखते हैं, उस शरीर को हम अन्तिम उच्छ्वास - निःश्वास तक छोड़ देते हैं - उससे अपनी ममता हटाते हैं।" संलेखना द्वारा जिनके शरीर तथा कषाय दोनों ही कृश हो चुके थे, उन परिव्राजकों ने इस प्रकार कहके आहार -पानी का परित्याग कर दिया। अपने शरीर को कटे हुए वृक्ष की तरह चेष्टा - शून्य बना लिया । मृत्यु की कामना न करते हुए शान्त भावपूर्वक अवस्थित हो गये। 87. “We bow and convey our reverence to the worthy ones (Arhantanam),... and so on up to ... who have attained the state of ultimate perfection, known as siddhi gai or siddha gati. "We bow and pay homage to Shraman Bhagavan Mahavir... and so on up to... the aspirant of and destined to attain the state of ultimate perfection (siddha gai or siddha gati). "We bow and pay homage to Ambad Parivrajak who is our religious teacher and preceptor. “Earlier, we had renounced, for life, any violence to living beings, falsehood, stealing, sexual activity and possessions in general before Ambad Parivrajak. But now, once again, we renounce, for life, any harm to living beings, falsehood, stealing, sexual activity and possessions (both gross and subtle) before Bhagavan Mahavir. औपपातिकसूत्र Jain Education International (256) For Private & Personal Use Only Aupapatik Sutra www.jainelibrary.org

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