Book Title: Agam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 292
________________ ८४. तए णं से परिव्वायगा झीणोदगा समाणा तण्हाए पारब्भमाणा उदगदातारमपस्समाणा अण्णमण्णं सद्दावेंति, सद्दावित्ता एवं वयासी ८४. इसके बाद वे परिव्राजक, जिनके पास का पानी बिल्कुल ही समाप्त हो चुका था, प्यास से अत्यन्त व्याकुल हो गये। वहाँ कोई पानी देने वाला भी नहीं दिखा। तब वे परस्पर एक-दूसरे को सम्बोधित कर इस प्रकार कहने लगे 84. They were extremely distressed with the thirst as their supply of water had exhausted. When they found no one around to offer them water they deliberated ८५. “ एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हे इमीसे अगामि आए जाव अडवीए कंचि देसंतरमणुपत्ताणं से उदए जाव झीणे । तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं इमीसे अगामियाए जाव अडवीए उदगदातारस्स सव्वओ समंता मग्गण - गवेसणं करित्तए । " त्ति कट्टु अण्णमण्णस्स अंतिए एयमहं पडिसुणेंति, पडिसुणित्ता तीसे अगामियाए जाव अडवीए उदगदातारस्स सव्वओ समंता मग्गण - गवेसणं करेंति, करित्ता उदगदातारमलभमाणा दोच्चंपि अण्णमण्णं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी ८५. “देवानुप्रियो ! हम इस अगम्य जंगल का, जिसमें कोई गाँव नहीं है, न ही लोगों का आवागमन है, अभी तो कुछ ही भाग पार कर पाये हैं कि हमारे पास जो पानी था, वह पीते-पीते समाप्त हो गया । अतः देवानुप्रियो ! हमारे लिए यही श्रेयस्कर है, हम इस ग्रामरहित निर्जन अटवी में सब दिशाओं में चारों ओर किसी जलदाता की मार्गणा - गवेषणा ( खोजबीन ) करें। " उन सबने परस्पर ऐसी चर्चा कर यह निश्चय किया। ऐसा निश्चय कर सब दिशाओं में चारों ओर जलदाता की खोज करने लगे । खोज करने पर भी जब कोई जलदाता नहीं मिला तब उन्होंने एक-दूसरे को इस प्रकार कहा 85. “Beloved of gods ! As of now we have been able to cross only a small part of this tortuous forest where there is neither a village nor any movement of people. We have consumed the supply of water we brought along. Therefore, beloved of gods! It is advisable for us to explore all around this uninhabited forlorn terrain for someone who can offer us water." After deliberation they came to a conclusion and accordingly started searching in all directions for some water-donor. In spite of औपपातिकसूत्र Aupapatik Sutra Jain Education International (252) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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