Book Title: Agam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 188
________________ ३८. (ग) अनेक जन भगवान को वन्दन हेतु, कोई पूजन हेतु, कोई सत्कार हेतु, कोई सम्मान हेतु, इसी प्रकार दर्शन हेतु, उत्सुकता - पूर्ति हेतु, भगवान को देखने के लिए, कोई तत्त्वों का स्वरूप जानने के लिए, अश्रुत-कभी पहले जो नहीं सुना, वह सुनेंगे, श्रुत- सुने हुए तत्त्व को संशयरहित करेंगे, इस भाव से, अनेक यह सोचकर कि युक्ति, तर्क तथा विश्लेषणपूर्वक तत्त्व - जिज्ञासा करेंगे, कई यह चिन्तन कर कि सभी सांसारिक सम्बन्धों का परित्याग कर, मुण्डित होकर अगार धर्म- गृहस्थ धर्म से आगे बढ़कर, अनगार धर्मश्रमण - जीवन स्वीकार करेंगे, अनेक यह सोचकर कि पाँच अणुव्रत, सात शिक्षाव्रत-यों बारह व्रत युक्त श्रावक धर्म स्वीकार करेंगे, अनेक जन जिनेन्द्रदेव की भक्ति - अनुराग के कारण, अनेक यह सोचकर कि यह अपना वंश-परम्परागत व्यवहार है, (यों विविध हेतु कारणों से प्रेरित हुए) भगवान की सेवा में आने को तैयार हुए। VARIETY OF REASONS 38. (c) This large mass of people got ready to go in Bhagavan's attendance for a variety of reasons-some to pay homage, some to worship and others to greet and honour him. There were those who wanted to behold him, satisfy their curiosity and just see him. Some wanted to know the true form of fundamentals, some in order to know the hitherto unknown (ashrut) and to affirm and confirm the already known (shrut) with logic, critical analysis and inquiry. They also included those who were thinking of renouncing all mundane relations, shaving their heads and transcending from the householder's way to the ascetic way (anagar dharma). Many of them only wanted to embrace the twelve-vow householder's code (Shravak dharma) comprising of five minor vows (anuvrats) and seven complimentary vows of spiritual discipline (shikshavrats). Many were inspired to go for their love and devotion for the Jina and many just in order to follow their family tradition. जाने की तैयारी ३८. (घ) व्हाया, कयबलिकम्मा, कयकोउयमंगलपायच्छित्ता, सिरसा कंठे मालकडा, आविद्धमणिसुवण्णा, कप्पियहारद्धहार - तिसर - पालंबलंबमाण - कडिसुत्त - सुकयसोहाभरणा, पवरवत्थपरिहिया, चंदणोलित्तगायसरीरा । ३८. (घ) भगवान को वन्दना करने जाने के लिए (अनेक) नगर जनों ने स्नान किया, बलिकर्म किये, कौतुक - शरीर को सजाने की दृष्टि से नेत्रों में अंजन आँजा, ललाट पर औपपातिकसूत्र Aupapatik Sutra Jain Education International ( 152 ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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