Book Title: Agam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 190
________________ ३८. (ङ) ( उनमें से बहुत से लोग) विविध वाहनों पर सवार हुए, जैसे- घोड़ों पर, हाथियों पर, शिविकाओं - पर्देदार पालखियों पर स्यंदमानिका - पुरुष -प्रमाण पालखियों पर तथा अनेक व्यक्ति बहुत पुरुषों द्वारा चारों ओर से घिरे हुए पैदल चल पड़े। वे (सभी लोग ) अतिशय आनन्दित - हर्षित होते हुए सुन्दर, मधुर घोष द्वारा नगरी को लहराते, गरजाते विशाल समुद्र - सदृश बनाते हुए उसके बीच से गुजरे । वे चलते हुए जहाँ पूर्णभद्र चैत्य था, वहाँ आये। भगवान से न अधिक दूर, न अधिक निकट यथोचित स्थान पर आकर तीर्थंकर भगवान की विशिष्टता के सूचक छत्र आदि अतिशय देखे । देखते ही अपने यान, वाहन वहाँ ठहरा दिये । ठहराकर यान - गाड़ी, रथ आदि, वाहन - घोड़े, हाथी आदि से नीचे उतरे । नीचे उतरकर, जहाँ श्रमण भगवान महावीर । थे, वहाँ आये। वहाँ आकर श्रमण भगवान महावीर को तीन बार आदक्षिण - प्रदक्षिणा की, वन्दन - नमस्कार किया । वन्दन - नमस्कार कर भगवान से यथोचित दूरी पर खड़े होकर शुश्रूषा- उनके वचन सुनने की उत्कण्ठा लिए, नमस्कार मुद्रा में भगवान महावीर के सामने विनयपूर्वक अंजलि बाँधे उनकी पर्युपासना करने लगे ( उनका सान्निध्य लाभ लेने लगे) । THE CARRIAGES 38. (e) A variety of means of commuting were used by them. These included horses, elephants and different types of palanquins and coaches (shivika, palakhi, syandamanika). Many just walked surrounded by large groups of people. These throngs of people passed through the city, filling it with pleasant noises and joyous hails giving it the appearance of a mighty ocean with giant waves. Crossing the city they arrived at Purnabhadra Chaitya. When they came near Bhagavan Mahavir, neither very close to him nor very far from him, they saw the divine umbrella and other supernatural signs unique to the Tirthankar. On seeing these they stopped their vehicles and got off their vehicles (yaan ) namely cart, chariot etc. and carriers (vaahan) like horse, elephant etc. After that they approached the spot where Bhagavan Mahavir was seated, circumambulated him three times and paid their homage and obeisance. Having done that, they stood before him at an appropriate distance respectfully joining their palms with rapt attention and devotion (availing the boon of his proximity). विवेचन - इभ्य एवं सार्थवाह के सम्बन्ध में में टीकाकार ने इस प्रकार विवरण दिया है औपपातिकसूत्र Jain Education International (154) For Private & Personal Use Only Aupapatik Sutra www.jainelibrary.org

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