Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01
Author(s): Bechardas Doshi, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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सु० १७-३३ ] जीवाईणं पञ्चकखाणि अपञ्चक्खाणीहिं वत्तव्वयाइ २५. पंचेंदियतिरिक्खजोणिया मणुस्सा य एवं चेव । २६. सेसा अपञ्चक्खाणी जाव वेमाणिया ।
[सु. २७ सव्त्र देसुत्तर गुणपच्चक्खाणि अपच्चक्खाणीणं जीव- पंचेंद्रियतिरिक्ख- मणुयाणं अप्पाबहुयं ]
२७. एतेसि णं भंते ! जीवाणं सव्युत्तर गुणपञ्च्चक्खाणी०, अप्पाबहुगाणि ५ तिण्णि वि जहा पढमे दंडए (सु. १४-१६) जाव मणूसाणं ।
[सु. २८. जीव- चउघीसदंडयाणं संजत - असंजत - संजता संजतेहि वत्तव्वया अप्पाबहुयं च ]
२८. जीवा णं भंते! किं संजता ? असंजता ? संजतासंजता ? गोयमा ! जीवा संजया वि०, तिण्णि वि, एवं जहेव पेण्णवणाए तहेव भाणियव्वं जाव वेमाणिया । अप्पा बहुगं तहेव (सु. १४ - १६ ) तिन्ह वि भाणियव्वं ।
[सु. २९ - ३२. जीव - चउघीसदंडयाणं पच्चक्खाणि - अपच्चक्खाणिपच्चक्खाणापच्चक्खाणीहिं वत्तव्यया ]
२९. जीवा णं भंते! किं पच्चक्खाणी ? अपच्चक्खाणी ? पच्चक्खाणापच्चक्खाणी ? गोतमा ! जीवा पच्चक्खाणी वि, एवं तिणि वि ।
३०. एवं मणुस्सा वि।
३१. पंचिंदियतिरिक्खजोणिया आदिल्लविरहिया ।
३२. सेसा सव्वे अपच्चक्खाणी जाव वेमाणिया ।
[सु. ३३-३५. पच्चक्खाणि अपच्चक्खाणि पच्चक्खाणापच्चक्खाणीणं जीवाईणं अप्पाबहुयं ]
३३. एतेसि णं भंते! जीवाणं पच्चक्खाणीणं जाव विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्त्रत्थोवा जीवा पच्चक्खाणी, पच्चक्खाणापच्चक्खाणी असंखेज्जगुणा, अपच्चक्खाणी अणंतगुणा ।
१. वि, असंजया वि संजया संजया वि, तिष्णि वि मु० ॥ २. प्रज्ञापनासूत्रे द्वात्रिंशत्तमं पदं द्रष्टव्यम् - प्रज्ञा० महावीर० पृ० ४१४ ॥ ३. वितिनिवि । ३१. पंचिं मु० ॥
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