Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01
Author(s): Bechardas Doshi, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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जाणणानिदेसाइ
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सु० १-३,१-५,१] जंबुद्दीवाईसु चंदसंखाजाणणानिदेसाइ [सु. २-५. जंबुद्दीष-लवणसमुद्द-धायइसंड-कालोदसम्मुद्द-पुक्खरघरदीवाईसु
चंदसंखाजाणणत्थं जीवाभिगमसुत्तावलोयणनिदेसो]
२. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइया चंदा पभासिंसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा १ एवं जहा जीवाभिगमे जाव-'नव य सया पण्णासा तारागणकोडिकोडीणं' ॥ सोभं सोभिंसु सोभिंति सोभिस्संति ।।
३. लवणे णं भंते ! समुद्दे केवतिया चंदा पभासिंसु वा पभासिति वा पभासिस्संति वा ? एवं जहा जीवाभिगमे जाव ताराओ।
४. धायइसंडे कालोदे पुक्खरवरे अभिंतरपुक्खरद्धे मणुस्सखेत्ते, एएसु सव्वेसु जहा जीवाभिगमे जाव-'एग ससी परिवारो तारागणकोडिकोडीणं ॥' .
५. पुंक्खरद्धे णं भंते । समुद्दे केवइया चंदा पभासिंसु वा पभासंति वा १० पभासिस्संति वा १ एवं सव्वेसु दीव-समुद्देसु जोतिसियाणं भाणियव्वं जाव सयंभूरमणे जाव सोमं सोभिंसु वा सोभंति वा सोभिस्संति वा । सेवं भंते ! सेवं भंते त्तिः।
नवमलए बीओ उद्देसो समत्तो ॥९.२॥
१५
[तइउद्देसाइतीसइमपजंता उद्देसा 'अंतरदीवा']
[सु. १. तइयाइतीसइमपज्जंतउद्देसाणमुवुग्धाओ] १. रायगिहे जाव एवं वयासी
१. दृश्यतां जीवाभिगमसूत्रम् , पत्र ३००, सू० १५३, आगमोदय० प्रका० । निष्टङ्कितो व्याख्यातश्चायं जीवाभिगमसूत्रपाठो वृत्तौ ॥ २. जाव-एगं च सयसहस्सं तेत्तीसं खलु भवे सहस्साइं। नव य सया मु०, नादृतोऽयं पाठो मूलवाचनायां वृत्तिकृद्भि!पलब्धश्वोपयुक्तसूत्रादशेषु ॥ ३. वा पुच्छा ३। एवं ला १॥ ४. दृश्यतां जीवाभिगमसूत्रम्, पत्र ३०३, सू० १५५, आगमोदय० प्रका०। निष्टङ्कितो व्याख्यातश्चायं जीवाभिगमसूत्रपाठो वृत्तौ ॥ ५. अब्भंतर' ला १॥ ६. दृश्यतां जीवाभिगमसूत्रम् , पत्र ३२७-३५, सू० १७५-७७ आगमोदय० प्रका० । निष्टङ्कितो व्याख्यातश्चायं जीवाभिगमसूत्रपाठो वृत्तौ ॥७. पुक्खरोदे णं अवृ०॥ ८. "चंदा० इत्यादौ प्रश्ने इदमुत्तरं दृश्यम्-संखेजा चंदा पभासिंसु वा पभासंति वा पभासिस्संति वा, इत्यादि" अवृ०॥ ९. “एवं सव्वेसु दीव-समुद्देसु त्ति पूर्वोक्तेन प्रश्नेन यथासम्भवं संख्याता असंख्याताश्च चन्द्रादय इत्यादिना चोत्तरेणेत्यर्थः" अवृ०॥ १०. वयासि ला १॥
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