Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01
Author(s): Bechardas Doshi, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 486
________________ सु० २०] नेरइयपवेसणगपरूवणा पुढवीओ चारियाओ तहा सक्करप्पभाए वि उवरिमाओ चारियव्वाओ जीव अहवा एग सक्कर०, एगे धूम०, एगे तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा १० - ३० । अहवा एगे वालुय०, एगे पंक०, एगे धूम०, एगे तमाए होज्जा १ - ३१ । अहवा एगे वालुय०, एगे पंक०, एगे धूमप्पभाए, एगे असत्तमाए होजा २-३२। अहवा एगे वालुय०, एगे पंक०, एगे तमाए, एगे अहेसत्तमाए होजा ३-३३। अहवा एगे वालुय०, एगे धूम०, एगे तमाए, एगे असत्तमाए होज्जा ४-३४। अहवा एगे .पंक०, एगे धूम०, एगे तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा १-३५। २०. पंच भंते! नेरइया नेरइयप्पवेसणए णं पविसमाणा किं रयणप्पभाए होज्जा ० ? पुच्छा । गंगेया ! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होजाँ७ "C १. ' जाव' पदेनेदं भङ्गाष्टकं ज्ञेयम्- एगे सक्कर०, एगे वालुय०, एगे पंक०, एगे तमाए० २ - २२ । एंगे स०, एगे वा०, एगे पं०, एगे अहेसत्तमाए ३ - २३ । एगे स०, एगे वा०, एगे धू०, एगे ० ४ - २४ । एगे स०, एगे वा०, एगे धू०, एगे अहे० ५-२५ । एगे स०, एगे वा०, एगे त०, एगे अहे० ६–२६ । एगे स०, एगे पं०, एगे धू०, एगे त० ७ - २७ । एगे स०, एगे पं०, एगे धू०, एगे अहे ० ८ = २८ । एगे स०, एगे पं०, एगे त०, एगे अहे ० ९-२९। " ॥ २. एवमत्र एकसंयोगे ७, द्विकसंयोगे ६३, त्रिकसंयोगे १०५, चतुष्कसंयोगे च ३५, इति चतुरो नै रयिकान् प्रतीत्य नरकप्रवेशनेऽत्र सर्वमिलने २१० भङ्गाः ॥ ३. एते ७ भङ्गा एकसंयोगेन ॥ ४. एते रत्नप्रभया द्विकसंयोगे २४ भङ्गाः ॥ ५. एते शर्कराप्रभया द्विकसंयोगे २० भङ्गाः ॥ ६. द्विकर्सयोगे वलुकाप्रभया १६, पङ्कप्रभया १२, धूमप्रभया ८, तमया च ४ भङ्गाः शर्कराप्रभाद्विकसांयोगिकचतुर्विंशतिभङ्गैर्वालुकाप्रभाद्विकसांयोगिकविंशतिभङ्गैश्च सह नरकाणां द्विकसंयोगे अहवा एगे रयण०, चत्तारि सक्करप्पभाए होजा १ । जाव अहवा एगे रयण ०, चत्तारि अहेसत्तमाए होज्जा ६ | अहवा दो रयण०, तिण्ण सक्करपभाए होज्जा १-७ । एवं जाव अहवा दो रयणप्पभाए, तिण्णि असत्तमाए होजा ६=१२ | अहवा तिण्णि रयण०, दो सक्करप्पभाए होजा १-१३ । एवं जाव अहेसत्तमाए होज्जा ६ = १८ | अहवा चत्तारि रयण०, एगे सक्करप्पभाए होजा १-१९। एवं जाव अहवा चत्तारि रयण०, एगे अहेसत्तमाए होज्जा ६ = २४ । अहवा एगे सक्कर०, चत्तारि वालुयप्पभाए होजा १ । एवं जहा रयणप्पभाए समं उवरिमपुढवीओ चारियाओ तहा सक्करप्पभाए वि समं चारेयव्वाओ जाव अहवा चत्तारि सक्करप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा २०" । एवं एक्केक्का समं चारेयव्वाओ जाव अहवा चत्तारि तमाए, एगे असत्तमाए होजा ८४ । १५ ८४ भङ्गाः ॥ Jain Education International ४२७ For Private & Personal Use Only ५. २० www.jainelibrary.org

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