Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01
Author(s): Bechardas Doshi, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

Previous | Next

Page 492
________________ सु० २१] नेरइयपवेसणगपरूवणा ४३३ पंचगसंजोगो वि तहेव, नवरं एको अन्महिओ संचारेयव्वो जाव पच्छिमो भंगो-अहवा दो वालुय०, एगे पंक०, एगे धूम०, एगे तम०, एगे अहेसत्तमाए होजा ।१०५। पकप्र० " अहवा एगे रयण० एगे सक्कर० जाव एगे तमाए होजा १, अहवा एगे रयण० जाव एगे धूम० एगे अहेसत्तमाए होजा २, अहवा एगे रयण० ५ जाव एगे पंक० एगे तमाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा ३, अहवा एगे रयण० १. पञ्चसंयोगवताम् एकविंशतिर्विकल्पा विधातव्याः। तद्यथा१. रत्नप्र० शर्कराप्र. वालुकाप्र० पंकप्र० धूमप्र०। तमप्र०। तमतमाप्र०। धूमप्र० तमा। तमतमा। तमा धूम. तमा। तमतमा। तमा धूमप्र० वालुकाप्र० पंकप्रभा धूमप्र० तमा। तमतमा। तमा तमतमा। धूमप्र० पंकप्र० शर्कराप्र० वालुकाप्र० पंकप्र० धूमप्र. तमा। १७. तमतमा। १८. तमतमा। धूमप्र० २०. पंकप्र० २१. वालुकाप्र० , अनया एकविंशत्या षटसंख्यायाः पञ्चराशितया स्थापने लब्धानां पञ्चानां विकल्पानां गुणकारे पञ्चोत्तरं शतं लभ्यते भङ्गानाम् । एवं पञ्चसंयोगे १०५ भङ्गा जायन्ते। षट्संख्यायाः पञ्चराशितया स्थापना एवम् तमा " तमा १९. १+१+१+१+२ १ +१++२+१ +१+२+१+१ +२+१+१+१। २+१+१+१+१॥ २८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548