Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01
Author(s): Bechardas Doshi, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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सु० १४५-५७] कालाईसु चउसु दारेसु नाणि-अन्नाणिपरूवणा विभंगनाणी विभंगणाणपरिगयाइं दवाइं जाणति पासति। एवं जाव भावतो गं विभंगनाणी विभंगनाणपरिगए भावे जाणति पासति ।१६।। [सु. १५२-१५३. सत्तरसमं कालदारं पडुच्च नाणि-अन्नाणिपरूवणा]
१५२. णाणी णं भंते! ' णाणि 'त्ति कालतो केवच्चिरं होति १ गोयमा! नाणी दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सादीए वा अपज्जवसिते, सादीए वा सपज्जवसिए। ५ तत्थ णं जे से सादीए सपज्जवसिए से जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छावडिं सागरोवमाइं सातिरेगाई।
१५३. आभिणिबोहियणाणी णं भंते! आभिणिबोहियणाणि ति०१। एवं नाणी, आभिणिबोहियनाणी जाव केवलनाणी, अन्नाणी, मइअन्नाणी, सुतअन्नाणी, विभंगनाणी; एएसिं दसण्ह वि संचिट्ठणा जहा कायठितीए ।१७। १०
[सु. १५४. अट्ठारसमअंतरदारपत्तव्ययाजाणणत्थं
जीवाभिगमसुत्तावलोयणनिद्देसो] १५४. अंतरं सव्वं जहा जीवाभिगमे । १८ । [सु. १५५. एगूषीसइमअप्पबहुत्तदारपत्तव्ययाजाणणत्थं
पनवणासुत्तापलोयणनिदेसो] १५५. अप्पाबहुगाणि तिण्णि जहा बहुवत्तव्वताए । १९ । [सु. १५६-१५९. पीसइमं पजादारं-नाण-अन्नाणपजवपरूषणा]
१५६. केवतिया णं भंते ! आभिणिबोदियणाणपन्जवा पण्णत्ता १ गोयमा ! अणंता आभिणिबोहियणाणपजवा पण्णता ।
१५७. [१] केवतिया णं भंते ! सुतनाणपजवा पण्णत्ता १ एवं चेव । २० [२] एवं जाव केवलनाणस्स।।
१. विभंग' ला १ ॥२. एतेसिं अटण्ह वि ला १॥ ३. महावीरवि० प्र० प्रज्ञापनासूत्रे अष्टादशतमं कायस्थितिपदमत्र द्रष्टव्यम्, पृ० ३०४-३१७, सू० १२५९-१३९८ । अत्र तु पृ० ३१२, सू० १३४६-१३५३ द्रष्टव्यम् ॥ ४. अंतरं जहा सव्वं जीवा ला १। श्रीजीवाजीवाभिगमसूत्रे अन्तरदर्शकः पाठः पृ० ४५५ प्रथमपार्श्वे सूत्र २६३, आगमोदय० प्र०॥ ५. महावीरवि० प्र० प्रज्ञापनासूत्रे तृतीयं बहुवत्तव्वपदमत्र द्रष्टव्यम् पृ० ८१-१११, सू० २१२-३३४ ॥
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