Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01
Author(s): Bechardas Doshi, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 442
________________ सु० १७-२६] पयोगबंधस्स वित्थरओ परूवणा ३८३ [सु. २१-२३. सरीरबंधस्स भेयजुयपरूपणा] २१. से किं तं सरीरबंधे १ सरीरबंधे दुविहे पण्णते, तं जहा-पुन्वप्पओगपञ्चइए य पडुप्पन्नप्पओगपञ्चइए य । २२. से किं तं पुव्वप्पओगपञ्चइए ? पुव्वप्पओगपचइए, जं णं नेरइयाणं संसारत्थाणं सव्वजीवाणं तत्थ तत्थ तेसु तेसु कारणेसु समोहन्नमाणाणं जीवैप्प- ५ देसाणं बंधे समुप्पज्जइ । से तं पुचप्पयोगपञ्चइए। २३. से किं तं पडुप्पन्नप्पयोगपञ्चइए १ पैडुप्पन्नप्पयोगपञ्चइए, जं गं केवलनाणिस्स अणगारस्स केवलिसमुग्घाएणं समोहयस्स, ताओ समुग्घायाओ पडिनियत्तमाणस्स, अंतरा पंथे वट्टमाणस्स तेया-कम्माणं बंधे समुप्पजइ । किं कारणं १ ताहे से पएसा एगत्तीगया भवंति ति । से तं पडुप्पन्नप्पयोगपञ्चइए। १० से तं सरीरबंधे। [सु. २४-१२९. सरीरप्पओगबंधस्स पित्थरओ परूषणा] [सु. २४. सरीरप्पओगबंधस्स ओरालियाइपंचभेयपरूषणा] २४. से किं तं सरीरप्पयोगबंधे १ सरीरप्पयोगबंधे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा-ओरालियसरीरप्पओगबंधे वेउब्धियसरीरप्पओगबंधे आहारगसरीरप्पओग- १० बंधे तेयासरीरप्पयोगबंधे कम्मासरीरप्पयोगबंधे । [सु. २५-५०. ओरालियसरीरप्पओगबंधस्स भेय-पभेयाइनिरूषणापुव्वं वित्थरओ परूवणा] २५. ओरालियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते १ गोयमा ! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा-एगिंदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे बेइंदियओरालिय- २० सरीरप्पयोगबंधे जाव पंचिंदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे। २६. एगिदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-पुढविक्काइयएगिदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे, १. °सारवत्थाणं मु०॥ २. “जीवप्पदेसाणं ति इह 'जीवप्रदेशानाम्' इत्युक्तावपि शरीरबन्धा. धिकारात् 'तात्स्थ्यात् तद्वयपदेशः' इति न्यायेन जीवप्रदेशाश्रिततैजस-कार्मणशरीरप्रदेशानामिति द्रष्टव्यम्” भवृ० ॥ ३. पच्चुप्प ला १॥ १. नाणस्स मु०॥ ५. “से ति तस्य केवलिनः" अवृ०॥ ६. तेजस' ला १॥ ७. बेंदिय° मु०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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