Book Title: Aendra Stuti Chaturvinshika Sah Swo Vivaran
Author(s): Yashovijay Upadhyay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 11
________________ प्रतावना. केटलांक पयो एवां पण तारवी शकीए तेम छ के-जेमा आवा दोषो न पण होय, तथापि तेटला उपरथी आखी कृतिने निर्दोष तो न ज कही शकाय । नाने मोढे कहेवायली आ वातने विद्वानो क्षमानी दृष्टिथी जुए एम इच्छु छु । ' प्रस्तुत स्तुतिना संपादनसमये तेनी खोपज्ञटीकायुक्त मात्र एक ज प्रति पूज्य श्रीमान् सागरानन्दसूरि महाराज पासेथी मळी छे । ते २४ पानानी अने नवीन लखेली छे । आ प्रतिनो उतारोजेना उपरथी करवामां आव्योछे ते प्रति चोंटी गयेल हती। तेने उखाडतां तेमां जे स्थळे अक्षरो उखडी गया ते स्थान नवीन प्रतिमां खाली छे । लेखके प्रमादथी अनेक स्थळे पाठो छोडी दीघा छे एटलं ज नहि पण ते लिपिनो अज्ञ होवाथी तेणे पण अशुद्धिओमा मोटो उमेरो कर्यो छे । आ रीते प्रस्तुत चतुर्विंशतिकानी प्रति अयंत अशुद्ध होवा छतां तेने शुद्ध करवामाटे तेम ज तूटी गयेला पाठोने उपाध्यायजीना शब्दोमां ज सांधवामाटे यथाशक्य यत्न को । प्रतिमां ज्या ज्यां अशुद्धिओ हती ते दरेक स्थळे सुधारेला पाठो गोळ कोष्ठकमां आप्या नथी, परन्तु लगभग अंदर ज सुधारी दीधा छ । आ प्रमाणे करवामां कोइ स्थळे प्रमादथी स्खलना थवा पामी होय तो ते माटे विद्वानो समक्ष क्षमा याचना छ । : उपरोक्त प्रति सिवाय एक अवचूरिनी प्रति प्रवर्तक श्रीकांतिविजयजी महाराजना छाणीना ज्ञानभंडारमाथी मळी छ । आ अवचूरि खोपज्ञ टीकाने आधारे करेल टांचणरूप होइ स्वोपज्ञ टीकाना ज शब्दोमां होवाथी टीकाना संशोधनमां कचित् कचित् सहायक थइ छ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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