Book Title: Aendra Stuti Chaturvinshika Sah Swo Vivaran Author(s): Yashovijay Upadhyay, Punyavijay Publisher: Atmanand Jain Sabha View full book textPage 9
________________ प्रस्तावना.. वाढीए तो लगभग चोथा भाग जेटली स्तुतिमओ एवी ज नजरे पडे के जेमा सोभनस्तुतिमा आवतो केटला एक विशेषणों मात्र शाब्दिक फेरफार करीने लीधेलां छे । जो के छन्द अने अलंकारमाटे कोइनो दावो न ज होई सके छतां शोभनमुनिए जे स्तुतिमाटे जे छन्द अने यमकालंकारनो जे भेद पसंद कर्यो छे तेने ज उपाध्यायजी पसंद करे ए उपरथी एटलं तो कही शकाय के-तेओश्री समक्ष शोभनमुनिकृत स्तुतिओ ज मुखतया आदर्शरूप छे । आ प्रकारनी पसंदगीथी उपाध्यायजीने यमकालंकारमयी स्तुतिना निर्माणमा तेम ज शोभनस्तुतिनां पद-वाक्य-विशेषणोना आहरणमां केवी सुगमता थइ छे ए नीचेनां उदाहरणोपरची समजी शकाशेकाव्य पाद ८३ १ जलव्यालव्याघ्रज्वलनगजरुग्बन्धनयुधो ८४ १ गजव्यालव्याघ्रानलजलसमिद्वन्धनरुजो ४ ३ पायावः श्रुतदेवता विवधती तत्राब्जकान्ती क्रमौ ४ २-४ सौभाग्याश्रयतां हिता निदधती पुण्यप्रभाविक्रमौ ७२ १ याऽत्र विचित्रवर्णविनतात्मजपृष्ठमधिष्ठिता ७२ १-२ चक्रधरा करालपरघातबलिष्ठमधिष्ठिता प्रमा सुरबिनतातनुभवपृष्ठमनुदितापदरं गतारवाक् १. सुमते सुमते १८-४ विभवा विभवाः १७ १सुमतिं सुमतिं १७-४ विभवं विभवं २४ १ गान्धारि वज्रमुसले जयतः समीर २४ ३ गान्धारि वज्रमुसले जगती तवास्याः ३७ १जयति शीतलतीर्थकृतः सदा ३५ १जयति शीतलतीर्थपतिजने ५३ १ नुदंस्तन प्रवितर मल्लिनाथ में ७३ महोदयं प्रषितनुमल्लिनाथ में शो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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