Book Title: Aendra Stuti Chaturvinshika Sah Swo Vivaran Author(s): Yashovijay Upadhyay, Punyavijay Publisher: Atmanand Jain Sabha View full book textPage 7
________________ प्रस्तावना. २९ श्लो. चारित्रस्नगणि २९ का.. २९ का० धर्मसागरोपाध्याय २७ का. ११ ,(यमकरहित प्राकृत) २७ आर्या १२ शाश्वतजिनयुत विहर. मानजिनचतुर्विशतिका २७ का. मुद्रित उपर नोंध लीधी ते सिवायनी अन्य स्तुतिचतुर्विंशतिकाओ होवी जोइए, पण अत्यार सुधीमा जे जे दृष्टिपथमा आवी छे तेनी ज नोंध मात्र आ स्थळे करी छे । अहीं आपेल सूचीमांनी लगभग घणी खरी ऋषभादि वीरपर्यन्त जिननी तेम ज यमकालंकारमयी छे । भणाववामाटे एकीसाथे सात सो स्तोत्र भेट आप्या हता। प्रत्यहं नवीन स्तोत्रनी रचना कर्या पछी ज भोजन लेवु एवी तेमने प्रतिज्ञा हती "पुरा श्रीजिनप्रभसूरिभिः प्रतिदिननवस्तवनिर्माणपुरःसरनिरवधाहारग्रहणाभिअहवद्भिः प्रत्यक्षपद्मावतीदेवीवचसाऽभ्युदयिनं श्रीतपागच्छं विभाव्य भगवतां श्रीसोमतिलकसूरीणां स्वशैक्षशिष्यादिपठनविलोकनाद्यर्थ यमक-श्लेष-चित्र-च्छन्दोविशेषादिनवनवभङ्गीसुभगाः सप्तशतीमिताः स्तवा उपदीकृता निजनामाकिताः॥" सिद्धान्तागमस्तवावचूरिप्रारम्मे ॥ १ चारित्ररलगणि तपा सोमसुन्दरसूरिना शिष्य हता । तेमणे दानप्रदीप चित्र कूटविहारप्रशस्ति आदिनी रचना करी छे । तेओ विक्रमनी पंदरमी-सोळमी सदीमां विधमान हता। धर्मसागरोपाध्याय विजयदानसूरिना शिष्य अने प्रसिद्ध आचार्य हीरविजयसूरिना गुरुभाइ हता। तेओश्रीए गच्छान्तरीओने परास्तकरवामाटे अनेक समर्थ अने प्रमाणभूत ग्रन्थोनी रचना करी छे । तेमनी कृतिओमां जंबूद्वीपप्रशप्तिदीका पाल्पकिरणावली इरियावहीपटूनिशिकासटीक पर्युषणादशशतक प्रवचनपरीक्षा षोडशकीवृत्ति औष्टिकमतोत्सूत्रदीपिका तपागच्छीयपट्टावली आदि मुख्य छ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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