Book Title: Aendra Stuti Chaturvinshika Sah Swo Vivaran Author(s): Yashovijay Upadhyay, Punyavijay Publisher: Atmanand Jain Sabha View full book textPage 5
________________ प्रस्तावना. शोभनमुनि मेरुविजयगणि यशोविजयोपाध्याय ५ (अपूर्ण) अज्ञात * - २७ थी ३९ काव्य अगर श्लोकप्रमाण यमकालंकारमयी स्तुतिचतुर्विंशतिकाओ नीचे प्रमाणेनी मळे छे. "भद्रकीर्तेर्धमत्माशाः कीर्तिस्तारागणाध्वना । प्रभा ताराधिपस्येव श्वेताम्बरशिरोमणेः ॥ ३२ ॥" तिलकमारी पृ. ४ : आमनुं विशेष चरित्र जाणवानी इच्छावाळाए प्रभावकचरित्र उपदेशरत्नाकर आदि ग्रंथो जोवा। १ शोभनमुनि महाकवि धनपालना लघुभाइ थाय । २ मेरुविजयगणि विजयसेनसूरिना राज्यमां थया छे। तेमना गुरुनुं नाम आनन्दविजयगणि हतुं। ___३ आ चतुर्विशतिकानी प्रारंभनी सात न स्तुतिओ (२८ कान्य ) "दाशसाहे. बनी पूजा" आदि बुकोमा छपाई छ । पाछळनी मळती नहीं होय एस लागे छ । * आ पांच स्तुतिचतुर्विशतिका सिवायनी ९६ काव्यप्रमाण आमलिक कल्याणसागरसूरिकृत पण एक मळे के. परन्तु ते यमकालंकारमयी त होवाकी देनी अही नोंच लीधी नबी ४ आ स्तुतिओमा २४ पद्य प्रत्येक तीर्थकरनी स्तुतिरूप होक के, अने त्रण पत्र अनुक्रमे सर्व जिनस्तुति ज्ञानस्तुति तथा शासनाधिष्ठातृदेवतानी स्तुतिरूप होक छे, जे दरेक तीर्थकरनी स्तुतिना पद्य साथे जोडीने बोलवानां होय छ । केटलीका चतुर्विशतिकामा २७ करतां वधारे पद्य छे तेनुं कारण मात्र एटलू ज छ के-तेमा मंगलाचरण के कर्टनामगर्म कान्य अथवा बन्ने सामेल होय छे । जेमा २९ करता धारे पथ छे तेमां शाश्वतजिन, सीमंधर आदि जिनोनी स्तुतिनां पच पण साभेल छे एम जाणवू। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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