Book Title: Aendra Stuti Chaturvinshika Sah Swo Vivaran Author(s): Yashovijay Upadhyay, Punyavijay Publisher: Atmanand Jain Sabha View full book textPage 4
________________ प्रस्तावना. __ आजे विद्वानो समक्ष स्खोपज्ञटीकासहित ऐन्द्रस्तुतिचतुर्विशतिका धरीए छीए । जेना कर्ता न्यायविशारद न्यायाचार्य श्रीमान् यशोविजयोपाध्याय छे । तेओश्रीमाटे आज सुधीमां घणुं लखायुं छे, छतां हजु घणुं लखवु शेष रहे छ । परन्तु अत्यारे तेने लगती तैयारी न होवाथी ते बाबतथी विरमी मात्र स्तुतिओने अंगे ज अहीं कांइ लखवानो इरादो छ । __ अत्यारे आपणा समक्ष ९६ काव्यप्रमाण यमकालंकारमयी जे स्तुतिचतुर्विंशतिकाओ विद्यमान छे ते सौमां रचनासमयनी दृष्टिए आचार्यबप्पभट्टिकृत स्तुतिचतुर्विंशतिका प्रथम छे अने यशोविजयोपाध्यायकृत अंतिम छे । अत्यारे नीचे प्रमाणेनी स्तुतिचतुर्विंशतिकाओ जोवामां आवे छे १ स्तुतिचतुर्विशतिका आचार्यबप्पभट्टि मुद्रित . १ आचार्य बप्पट्टि पांचाल (पंजाब) देशनिवासी हता। तेमना पितार्नु नाम बप्पि, मातानुं नाम भट्टि अने पोतार्नु नाम सुरपाल हतुं । तेमणे सातमे वर्षे दीक्षा लीधी हती। माता-पितानी प्रसन्नताने माटे तेमनुं नाम बप्प-भट्टि राखवामां आव्यु हतुं । तेमनुं मुख्य नाम भद्रकीर्ति हतुं । गुरु आचार्य सिद्धसेन हता। कन्नोजना राजा आमराजे तेओने यावज्जीव मित्ररूपे अने मरणसमये गुरुतरीके स्वीकार्या हता। 'गउडवहो' महाकाव्यना कर्ता महाकवि श्रीवाक्पतिराजने पाछली अवस्थामां प्रतिबोध कर्यानुं पण कहेवामां आवे छे। तेमनो जन्म संवत् ८०० भाद्रपद तृतीया रविवार हस्तनक्षत्र, दीक्षा ८०७ वैशाख शुक्ल तृतीया, आचार्यपद ८११ चैत्र वदि ६, स्वर्गवास ८९५ श्रावण शुदि ८ स्वातिनक्षत्र । एमणे तारागणनामनो ग्रंथ रच्यो छे जे अत्यारे मळतो नथी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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