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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह पंचकल्याणक अर्घ्य
(सोरठा) आये गर्भ मँझार, माँ सिद्धार्था धनि हुई।
देव किया जयकार, षष्ठी सुदि वैशाख दिन ।। ॐ ह्रीं वैशाखशुक्लषष्ठयां गर्भमंगलमंडिताय श्री अभिनन्दननाथजिनेन्द्राय अर्घ्य नि. ।
हुआ जन्म सुखकार, माघ सुदी बारस तिथि।
हर्षित इन्द्र अपार, उत्सव नाना विधि किए। ॐ ह्रीं माघशुक्लद्वादश्यां जन्ममंगलमंडिताय श्री अभिनन्दननाथजिनेन्द्राय अयं नि. ।
नश्वर मेघ निहार, हो विरक्त जिननाथ जी।
दीक्षा ली सुखकार, माघ सुदी बारस दिना॥ ॐ ह्रीं माघशुक्लद्वादश्यां तपोमंगलमंडिताय श्री अभिनन्दननाथजिनेन्द्राय अयं नि. ।
रही सहज हो नाथ, वर्ष अठारह मुनिदशा।
आप हुए जिननाथ, पौष सुदी चौदश दिना॥ ॐ ह्रींपौषशुक्लचतुर्दश्यां ज्ञानमंगलमंडिताय श्री अभिनन्दननाथजिनेन्द्राय अयं नि.।
आनन्द कूट प्रसिद्ध, शिखर सम्मेद महान है।
तहँ ते भये सुसिद्ध, षष्ठी सुदी वैशाख प्रभु ।। ॐ ह्रीं वैशाखशुक्लषष्ठयां मोक्षमंगलमंडिताय श्री अभिनन्दननाथजिनेन्द्राय अयं नि.।
जयमाला
(दोहा) जयमाला जिनराज की, गाऊँ मंगलकार । जिनकी शुभ परिणति लखे, हो वैराग्य उदार ॥
(छन्द-पद्धरी) वन्दन अभिनन्दन स्वामी को, चौथे तीर्थंकर नामी को। विदेहक्षेत्र में नृपति महाबल, न्यायवन्त शोभें बहु दल बल॥ इक दिन सहज रूप वैरागे, यो मन माँहिं विचारन लागे।
ओस बिन्दु सम वैभव सारा, दुख कारण सब ही परिवारा ।। ज्यों-ज्यों भोग मनोहर पावे, तृष्णा त्यों-त्यों बढ़ती जावे। जब तक श्वांसा तब तक आशा, आशावान जगत के दासा ॥
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