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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह
छत्तीस सुगुण से तुम मण्डित, निश्चय रत्नत्रय हृदय धार । हे मुक्ति वधू के अनुरागी, आचार्य सुगुरु को नमस्कार । एकादश अंग पूर्व चौदह के, पाठी गुण पच्चीस धार। बाह्यान्तर मुनि मुद्रा महान, श्री उपाध्याय को नमस्कार । व्रत समिति गुप्ति चारित्र धर्म, वैराग्य भावना हृदय धार। हे द्रव्य भाव संयम मय मुनिवर, सर्व साधु को नमस्कार । बहु पुण्य संयोग मिला नरतन, जिनश्रुत जिनदेव चरण दर्शन । हो सम्यग्दर्शन प्राप्त मुझे, तो सफल बने मानव जीवन ॥ निजपर का भेद जानकर मैं, निज को ही निज में लीन करूँ।
अब भेदज्ञान के द्वारा मैं निज आत्म स्वयं स्वाधीन करूँ॥ निज में रत्नत्रय धारण कर, निज परिणति को ही पहिचानें। पर परिणति से हो विमुख सदा, निज़ ज्ञान तत्त्व को ही जानूँ ॥ जब ज्ञान ज्ञेय ज्ञाता विकल्प तज, शुक्लध्यान मैं ध्याऊँगा। तब चार घातिया क्षय करके, अहँत महापद पाऊँगा। है निश्चित सिद्ध स्वपद मेरा, हे प्रभु कब इसको पाऊँगा। सम्यक् पूजा फल पाने को, अब निज स्वभाव में आऊँगा। अपने स्वरूप की प्राप्ति हेतु, हे प्रभु मैंने की है पूजन। तबतक चरणों में ध्यान रहे, जबतक न प्राप्त हो मुक्ति सदन ॥ ॐ ह्रीं श्री अर्हन्त-सिद्ध आचार्य उपाध्याय सर्वसाधु पंचपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमाला अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
हे मंगल रूप अमंगल हर, मंगलमय मंगल गान करूँ। मंगल में प्रथम श्रेष्ठ मंगल, नवकार मंत्र का ध्यान करूँ॥
॥ पुष्पाञ्जलिं क्षिपामि ॥
भविष्यदृष्टा वह है, जो पानी आने से पहले पाल बाँध ले।
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