Book Title: Adhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Author(s): Ravindra
Publisher: Kanjiswami Smarak Trust Devlali

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Page 232
________________ 231 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह वासुपूज्य अरु मल्लि-नेमिप्रभु-पार्श्वनाथ-सन्मति गुणखान । अर्घ्य समर्पित पंच बालयति को पञ्चम गति लहँ महान ॥ ॐ ह्रीं श्री पंचबालयतिजिनेन्द्रेभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अयं निर्वपामीति स्वाहा। जयमाला (दोहा) पंच बालयति नित बसो, मेरे हृदय मँझार। जिनके उर में बस रहा, प्रिय चैतन्य कुमार॥ (छप्पय) प्रिय चैतन्य कुमार सदा परिणति में राजे, पर-परिणति से भिन्न सदा निज में अनुरागे। दर्शन-ज्ञानमयी उपयोग सुलक्षण शोभित, जिसकी निर्मलता पर आतमज्ञानी मोहित। ज्ञायक त्रैकालिक बालयति मम परिणति में व्याप्त हो। मैं न, बालयति पंच को पंचमगति पद प्राप्त हो। (वीरछन्द) धन्य-धन्य हे वासुपूज्य जिन ! गुण अनन्त में करो निवास, निज आश्रित परिणति में शाश्वत महक रही चैतन्य-सुवास । सत् सामान्य सदा लखते हो क्षायिक दर्शन से अविराम, तेरे दर्शन से निज दर्शन पाकर हर्षित हूँ गुणखान ।। मोह-मल्ल पर विजय प्राप्त कर महाबली हे मल्लि जिनेश!, निज गुण-परिणति में शोभित हो शाश्वत मल्लिनाथ परमेश। प्रतिपल लोकालोक निरखते केवलज्ञान स्वरूप चिदेश, विकसित हो चित् लोक हमारा तव किरणों से सदा दिनेश। राजमती तज नेमि जिनेश्वर ! शाश्वत सुख में लीन सदा, भोक्ता-भोग्य विकल्प विलयकर निज में निज का भोग सदा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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