Book Title: Adhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Author(s): Ravindra
Publisher: Kanjiswami Smarak Trust Devlali

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Page 230
________________ 229 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह श्री पंचबालयति जिनपूजन - पण्डित अभयकुमारजी (हरिगीतिका) निज-ब्रह्म में नित लीन परिणति से सुशोभित हे प्रभो। पञ्चम परम निज पारिणामिक से विभूषित हे विभो॥ हे नाथ तिष्ठो अत्र तुम सन्निकट हो मुझमय अहो। श्री बालयति पाँचों प्रभु को वन्दना शत बार हो। ॐ ह्रीं श्री वासुपूज्य-मल्लि-नेमि-पार्श्व-वीराः पंचबालयतिजिनेन्द्राः ! अत्र अवतरन्तु अवतरन्तु संवौषट् । अत्र तिष्ठन्तु तिष्ठन्तु ठः ठः। अत्र मम सन्निहिता भवन्तु भवन्तु वषट् (इति आह्वाननं स्थापनं सन्निधिकरणञ्च) (वीरछन्द) हे प्रभु ! ध्रुव की ध्रुव परिणति के पावन जल में कर स्नान । शुद्ध अतीन्द्रिय आनन्द का तुम करो निरन्तर अमृत-पान ।। क्षणवर्ती पर्यायों का तो जन्म-मरण है नित्य स्वभाव। पंच बालयति-चरणों में हो तन संयोग-वियोग अभाव । ॐ ह्रीं श्री वासुपूज्य-मल्लि-नेमि-पार्श्व-वीराः पंचबालयतिजिनेन्द्रेभ्यो जन्ममरा-मृत्यु विनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा। सुरभित चेतनद्रव्य आपकी परिणति में नित महक रहा। क्षणवर्ती चैतन्य विवर्तन की ग्रन्थि में चहक रहा। द्रव्य और गुण पर्यायों में सदा महकती चेतन गन्ध । पंच बालयति के चरणों में क्षय हो राग-द्वेष दुर्गन्ध । ॐ ह्रीं श्री पंचबालयतिजिनेन्द्रेभ्यो संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। परिणामों के ध्रुव प्रवाह में बहे अखण्डित ज्ञायकभाव। द्रव्य-क्षेत्र अरु काल-भाव में नित्य अभेद अखण्ड स्वभाव ।। निज गुण-पर्यायों में प्रभु का अक्षय पद अविचल अभिराम। पंच बालयति जिनवर ! मेरी परिणति में नित करो विराम ।। ॐ ह्रीं श्री पंचबालयतिजिनेन्द्रेभ्यो अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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