Book Title: Adhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Author(s): Ravindra
Publisher: Kanjiswami Smarak Trust Devlali

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Page 222
________________ 221 आध्यात्मिक पूजन- विधान संग्रह श्री सीमन्धर जिनपूजन - डॉ. भारिल्ल भवसमुद्र सीमित कियो, सीमंधर भगवान । कर सीमित निजज्ञान को प्रगट्यो पूरण ज्ञान || प्रगट्यो पूरण ज्ञान वीर्य दर्शन सुखधारी । समयसार अविकार विमल चैतन्य विहारी ॥ अन्तर्बल से किया प्रबल रिपु मोह पराभव । अरे भवान्तक ! करो अभय, हर लो मेरा भव ॥ ॐ ह्रीं श्री सीमन्धरजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं । ॐ ह्रीं श्री सीमन्धरजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं । ॐ ह्रीं श्री सीमन्धरजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं । प्रभुवर तुम जल से शीतल हो, जल से निर्मल अविकारी हो । मिथ्यामल धोने को जिनवर, तुम ही तो मल - परिहारी हो । तुम सम्यज्ञान जलोदधि हो, जलधर अमृत बरसाते हो । भविजन - मनमीन प्राणदायक, भविजन मनजलज खिलाते हो ॥ हे ज्ञानपयोनिधि सीमन्धर ! यह ज्ञानप्रतीक समर्पित है । हो शान्त ज्ञेयनिष्ठा मेरी, जल से चरणाम्बुज चर्चित है ॥ ॐ ह्रीं श्री सीमन्धरजिनेन्द्राय जन्म जरा मृत्यु रोग विनाशनाय जलं नि. स्वाहा । चन्दनसम चन्द्रवदन जिनवर, तुम चन्द्रकिरण से सुखकर हो । भवताप निकन्दन हे प्रभुवर ! सचमुच तुम ही भव दुखहर हो । जल रहा हमारा अन्तः स्तल, प्रभु इच्छाओं की ज्वाला से । यह शान्त न होगा हे जिनवर, रे विषयों की मधुशाला से || चिर अन्तर्दाह मिटाने को, तुम ही मलयागिरि चन्दन हो । Jain Education International चन्दन से चरचूँ चरणाम्बुज, भवतप हर ! शत-शत वन्दन हो । ॐ ह्रीं श्री सीमन्धरजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चन्दनम् नि. स्वाहा । प्रभु ! अक्षतपुर के वासी हो, मैं भी तेरा विश्वासी हूँ । क्षत-विक्षत में विश्वास नहीं, तेरे पद का प्रत्याशी हूँ ।। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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