Book Title: Adhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Author(s): Ravindra
Publisher: Kanjiswami Smarak Trust Devlali
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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह
श्री महावीर जिनपूजन
(दोहा) अद्भुत प्रभुता शोभती, झलके शान्ति अपार । महावीर भगवान के, गुण गाऊँ अविकार ।। निजबल से जीत्यो प्रभो, महाक्लेशमय काम।
पूजन करते . भावना, वर्तुं नित निष्काम॥ ॐ ह्रीं श्री महावीरजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् इत्याह्वाननम्। ॐ ह्रीं श्री महावीरजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ॐ ह्रीं श्री महावीरजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम् ।
(त्रिभंगी) भव-भव भटकायो, अति-दुख पायो, तृष्णाकुल तुम ढिंग आयो। उत्तम समता जल, शुचि अति शीतल, पायो उर आनन्द छायो। इन्द्रादि नमन्ता, ध्यावत संता, सुगुण अनन्ता, अविकारी।
श्री वीर जिनन्दा, पाप निकन्दा, पूजों नित मंगलकारी।। ॐ ह्रीं श्री महावीरजिनेन्द्राय जन्म-जरा-मृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
भवताप निकन्दन, चन्दनसम गुण, हरष-हरष गाऊँ ध्याऊँ। नायूँ दुर्मोहे, दुखमय क्षोभं, सहज शान्ति प्रभु सम पाऊँ । इन्द्रादि.।। ॐ ह्रीं श्री महावीरजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा । अक्षय गुणमण्डित, अमल अखंडित, चिदानन्द पदप्रीति धरूँ।
क्षत् विभव न चाहूँ, तोष बढ़ाऊँ, अक्षय प्रभुता प्राप्त करूँ॥ इन्द्रादि...॥ ॐ ह्रीं श्री महावीरजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। प्रभुसम-आनन्दमय, नित्यानन्दमय, परमब्रह्मचर्य चाहत हों। नव बाढ़ लगाऊँ, काम नशाऊँ, सहज ब्रह्मपद ध्यावत हों। इन्द्रादि...॥ ॐ ह्रीं श्री महावीरजिनेन्द्राय कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
दुख क्षुधा नशावन, पायो पावन, निज अनुभव रस नैवेद्यं । नित तृप्त रहाऊँ, तुष्ट रहाऊँ, निज में ही हूँ निर्भेदं । इन्द्रादि...।। ॐ ह्रीं श्री महावीरजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
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