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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह
जो होता है वह होने दो, होनी को स्वीकार करो। कर्त्तापन का भाव न लाओ, निज हित का पुरुषार्थ करो ॥७॥ दया करो पहले अपने पर, आराधन से नहीं चिगो। कुछ विकल्प यदि आवे तो भी, सम्बोधन समतामय हो ॥८॥ यदि माने तो सहज योग्यता, अहंकार का भाव न हो। नहीं माने भवितव्य विचारो, जिससे किंचित् खेद न हो॥९॥ हीनभाव जीवों के लखकर, ग्लानिभाव नहीं मन में हो। कर्मोदय की अति विचित्रता, समझो स्थितिकरण करो॥१०॥ अरे कलुषता पाप बंध का, कारण लखकर त्याग करो। आलस छोड़ो बनो उद्यमी, पर सहाय की चाह न हो॥११॥ पापोदय में चाह व्यर्थ है, नहीं चाहने पर भी हो। पुण्योदय में चाह व्यर्थ है, सहजपने मन वांछित हो ॥१२॥ आर्तध्यान कर बीज दुख के, बोना तो अविवेक अहो। धर्म ध्यान में चित्त लगाओ, होय निर्जरा बंध न हो ॥१३॥ करो नहीं कल्पना असम्भव, अब यथार्थ स्वीकार करो। उदासीन हो पर भावों से सम्यक् तत्त्व विचार करो॥१४॥ तजो संग लौकिक जीवों का, भोगों के अधीन न हो। सुविधाओं की दुविधा त्यागो, एकाकी शिवपंथ चलो ॥१५|| अति दुर्लभ अवसर पाया है, जग प्रपंच में नहीं पड़ो। करो साधना जैसे भी हो, यह नर भव अब सफल करो ॥१६॥
ज्ञानाष्टक निरपेक्ष हूँ कृतकृत्य मैं, बहु शक्तियों से पूर्ण हूँ। मैं निरालम्बी मात्र ज्ञायक, स्वयं में परिपूर्ण हूँ।
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