Book Title: Adhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Author(s): Ravindra
Publisher: Kanjiswami Smarak Trust Devlali

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Page 211
________________ आध्यात्मिक पूजन- विधान संग्रह (दोहा) श्री जिनवर की भक्ति से, दूर होय भव-भार । उर-सिंहासन थापिये, प्रिय चैतन्य कुमार ॥ (जिनप्रतिमा को सिंहासन पर विराजमान करें तथा निम्न छन्द बोलकर अर्घ्य चढ़ायें ।) जल - गन्धादिक द्रव्य से, पूजूँ श्री जिनराज । पूर्ण अर्घ्य अर्पित करूँ, पाऊँ चेतनराज ॥ ॐ ह्रीं श्री पीठस्थितजिनाय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । 210 (दोहा) जिन संस्पर्शित नीर यह, गन्धोदक गुण खान । मस्तक पर धारूँ सदा, बनूँ स्वयं भगवान || ( मस्तक पर गन्धोदक चढ़ायें, अन्य किसी अंग से गन्धोदक का स्पर्श वर्जित है । श्री देव -शास्त्र-गुरु पूजन - बाबू युगलजी 1 - केवल रवि किरणों से जिसका, सम्पूर्ण प्रकाशित है अंतर । उस श्री जिनवाणी में होता, तत्त्वों का सुन्दरतम दर्शन || सद्दर्शन बोध चरण पथ पर, अविरल जो बढ़ते हैं मुनिगण । उन देव परम-आगम गुरु को, शत शत वंदन शत शत वंदन ॥ ॐ ह्रीं श्री देवशास्त्रगुरुसमूह ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री देवशास्त्रगुरुसमूह ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं । ॐ ह्रीं श्री देवशास्त्रगुरुसमूह ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । इन्द्रिय के भोग मधुर विषसम, लावण्यमयी कंचन काया । यह सब कुछ जड़ की क्रीड़ा है, मैं अबतक जान नहीं पाया ॥ मैं भूल स्वयं के वैभव को, पर ममता में अटकाया हूँ । अब निर्मल सम्यक् नीर लिये, मिथ्यामल धोने आया हूँ || ॐ ह्रीं श्री देवशास्त्रगुरुभ्यः जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि. स्वाहा । जड़ चेतन की सब परिणति प्रभु ! अपने-अपने में होती है। अनुकूल कहें प्रतिकूल कहें, यह झूठी मन की वृत्ती है ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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