Book Title: Adhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Author(s): Ravindra
Publisher: Kanjiswami Smarak Trust Devlali

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Page 195
________________ 194 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह मंगल शृङ्गार मस्तक का भूषण गुरु आज्ञा, चूड़ामणि तो रागी माने। सत्-शास्त्र श्रवण है कर्णों का, कुण्डल तो अज्ञानी जाने ॥१॥ हीरों का हार तो व्यर्थ कण्ठ में, सुगुणों की माला भूषण। कर पात्र-दान से शोभित हो, कंगन हथफूल तो हैं दूषण ॥२॥ जो घड़ी हाथ में बंधी हुई, वह घड़ी यहीं रह जायेगी। जो घड़ी आत्म-हित में लागी, वह कर्म बंध विनशायेगी।३।। जो नाक में नथुनी पड़ी हुई, वह अन्तर राग बताती है। श्वास-श्वास में प्रभु सुमिरन से, नासिका शोभा पाती है ।।४।। होठों की यह कृत्रिम लाली, पापों की लाली लायेगी। जिसमें बँधकर तेरी आत्मा, भव-भव के दुःख उठायेगी ॥५॥ होठों पर हँसी शुभ्र होवे, गुणियों को लखते ही भाई। ये होठ तभी होते शोभित, तत्त्वों की चर्चा मुख आई॥६॥ क्रीम और पाउडर मुख को, उज्ज्वल नहिं मलिन बनाता है। हो साम्यभाव जिस चेहरे पर, वह चेहरा शोभा पाता है॥७॥ आँखों में काजल शील का हो, अरु लज्जा पाप कर्म से हो। स्वामी का रूप बसा होवे, अरु नाता केवल धर्म से हो ॥८॥ जो कमर करधनी से सुन्दर, माने उस सम है मूढ़ नहीं। जो कमर ध्यान में कसी गई, उससे सुन्दर है नहीं कहीं ॥९॥ पैरों में पायल ध्वनि करतीं, वे अन्तर द्वन्द बताती हैं। जो चरण चरण की ओर बढ़े, उनके सन्मुख शरमाती हैं॥१०॥ जड़ वस्त्रों से तो तन सुन्दर, रागी लोगों को दिखता है। पर सच पूछो उनके अन्दर, आतम का रूप सिसकता है॥११॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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