Book Title: Adhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Author(s): Ravindra
Publisher: Kanjiswami Smarak Trust Devlali

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Page 186
________________ 185 आध्यात्मिक पूजन- विधान संग्रह श्री आध्यात्मिक पाठ संग्रह (खण्ड-४) सामायिक पाठ (दोहा) I पंच परम गुरु को प्रणमि, सरस्वती उर धार । करूँ कर्म छेदंकरी सामायिक सुखकार ॥१॥ (चाल - छन्द) आत्मा ही समय कहावे, स्वाश्रय से समता आवे । वह ही सच्ची सामायिक, पाई नहीं मुक्ति विधायक ॥२॥ उसके कारण मैं विचारूँ, उन सबको अब परिहारूँ । तन में 'मैं हूँ' मैं विचारी, एकत्वबुद्धि यों धारी ॥ ३ ॥ दुखदाई कर्म जु माने, रागादि रूप निज जाने आस्रव अरु बन्ध ही कीनो, नित पुण्य-पाप में भीनो ॥४॥ पापों में सुख निहारा, पुण्य करते मोक्ष विचारा । इन सबसे भिन्न स्वभावा, दृष्टि में कबहुँ न आवा ॥५॥ मदमस्त भयो पर ही में, नित भ्रमण कियो भव भव में । मन वचन योग अरु तन से, कृत कारित अनुमोदन से || ६ || विषयों में ही लिपटाया, निज सच्चा सुख नहीं पाया। निशाचर हो अभक्ष्य भी खाया, अन्याय किया मन भाया ॥७॥ लोभी लक्ष्मी का होकर, हित-अहित विवेक मैं खोकर । निज - पर विराधना कीनी, किञ्चित् करुणा नहिं लीनी ॥ ८ ॥ षट्काय जीव संहारे, उर में आनन्द विचारे । जो अर्थ वाक्य पद बोले थे त्रुटि प्रमाद विष घोले ॥ ९ ॥ 1 9 किञ्चित् व्रत संयम धारा, अतिक्रम व्यतिक्रम अतिचारा । उनमें अनाचार भी कीने, बहु बाँधे कर्म नवीने ॥१०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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