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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह
श्री अनन्तनाथ जिनपूजन
(वीरछन्द) जय अनन्त भगवन्त संत प्रभु, तारण-तरण जिहाज हो, विषय-कषाय इन्द्रियाँ जीतीं, भावरूप जिनराज हो। निज प्रभुता अनन्त दरशाई, मोह अंधेरा दूर भगा, अनन्त चतुष्टय रूप महेश्वर, पूजन का उल्लास जगा।
(दोहा) प्रभुवर की पूजा करें, रोम-रोम हुलसाय।
निज प्रभुता पावें प्रभो, यही भाव उमगाय॥ ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठःठः। ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय! अत्र मम सनिहितो भव भव वषट्। समता भाव सहज सुखकार, जन्म मरण दु:ख नाशनहार।
महासुख होय, प्रभु पद पूजे शिवसुख होय ।। जय जय अनन्तनाथ भगवन्त, गुण-अनन्त अनुपम शोभन्त ।।महासुख..॥ ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।
समकित शीतलता का मूल, सहज नशे भव-भव की शूल। महासुख होय, प्रभु पद पूजें शिवसुख होय ॥जय जय अनन्तनाथ.. | ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ।
जग के पद क्षत् रूप लखाय, अक्षय पद निज में विलसाय। महासुख होय, प्रभु पद पूजें शिवसुख होय ॥जय जय अनन्तनाथ.. ॥ ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
जीते काम सुभट जिनराय, धारें ब्रह्मचर्य हुलसाय। महासुख होय, प्रभु पद पूजे शिवसुख होय ॥जय जय अनन्तनाथ..॥ ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय कामवाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।
अनुभव रस में तृप्त रहाय, क्षुधा तृषा सहजहिं विनशाय । महासुख होय, प्रभु पद पूजें शिवसुख होय ॥जय जय अनन्तनाथ..॥ ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
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