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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह तन-मन-धन निज से भिन्न मान, लौकिक वाँछा नहिं लेश रखू।
तुम जैसा वैभव पाने को, तव निर्मल चरण-कमल अयूँ ।। ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।
चन्दन से शान्ति नहीं होगी, यह अन्तर्दहन जलाता है। निज अमल भावरूपी चन्दन ही, रागाताप मिटाता है। तन.॥ ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं नि. स्वाहा।
प्रभु उज्ज्वल अनुपम निजस्वभाव ही, एकमात्र जग में अक्षत।
जितने संयोग वियोग तथा, संयोगी भाव सभी विक्षत ॥ तन.॥ ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं नि. स्वाहा।
ये पुष्प काम-उत्तेजक हैं, इनसे तो शान्ति नहीं होती।
निज समयसार की सुमन माल ही कामव्यथा सारी खोती॥ तन.॥ ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि. स्वाहा। जड़ व्यञ्जन क्षुधा न नाश करें, खाने से बंध अशुभ होता।
अरु उदय में होवे भूख अतः, निजज्ञान अशन अब मैं करता ॥ तन.॥ ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं नि. स्वाहा।
जड़ दीपक से तो दूर रहो, रवि से नहिं आत्म दिखाई दे। निज सम्यक्ज्ञानमयी दीपक ही, मोहतिमिर को दूर करे। तन.॥ ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथजिनेन्द्राय मोहांधकारविनाशनाय दीपं नि. स्वाहा।
जब ध्यान-अग्नि प्रज्ज्वलित होय, कर्मों काईंधन जलेसभी। दशधर्ममयी अतिशय सुगंध, त्रिभुवन में फैलेगी तब ही॥ तन.।। ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं नि. स्वाहा।
जो जैसी करनी करता है, वह फल भी वैसा पाता है। ___ जो हो कर्तृत्व-प्रमाद रहित, वह महा मोक्षफल पाता है।। तन.।। ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्ताये फलं नि. स्वाहा । निज आत्मस्वभाव अनुपम है, स्वाभाविक सुख भी अनुपम है।
अनुपम सुखमय शिवपद पाऊँ, अतएव यह अर्घ्य समर्पित है ।।तन.।। ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अयं नि. स्वाहा।
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